कल शाम की चाय पीते समय फुरसत के पलों में एक तितली आसपास मँडराती रही , तुलसी के सूखे डंठल पार बैठ - बैठ अपनी फोटो खिंचवाती रही। उससे कुछ बातें हुईं, आइए आप भी देखिए -
ब्ला० - तितली रानी - तितली रानी
बोलो क्या हो गई परेशानी
फूलों पर तुम मँडराती हो
आज ठूँठ से छेड़ाखानी ?
तित० - ना यह खेल ना ही कौतुक
ना ही कोई छेड़ाखानी
गर्मी से बेहाल हुई हूं
जाने कब बरसेगा पानी !
7 टिप्पणियां:
यही सबकी परेशानी है वहाँ..
बस इसी तितली संवाद को बच रहे हैं ब्लॉगर...बकिया तो कोई संवाद स्थापित कर नहीं रहा. :)
तुलसी और तितली । वाह !
सुन्दर संवाद!
तितली पानी की आशा में दर-दर घूम रही है।
फर-फर उड़कर सावन में ठूँठों को चूम रही है।।
सुंदर संवाद!
सामयिक भी और प्रासंगिक भी!
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तितली न तो बोलती है
और
न ही पानी पीती है!
फिर भी हम सब
उससे कितना बतिया लेते हैं
और
अपनी बात उसके मुँह से
कहलवा लेते हैं!
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