शैलेय हमारे समय के समर्थवान और संभावनाशील कवि है. अभी कुछ ही महीने पूर्व उनका कविता संकलन 'या' आया हो जो कि साहित्यिक हलको और कविता प्रेमियों के बीच खासा चर्चित हुआ है. पिछले एक साल से विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में उनकी कई कहानियाँ भी प्रकाशित हुई हैं जिन्हें पाठक बिरादरी ने पसंद किया है। अभी कुछ ही दिन पहले शैलेय का पहला कहानी संग्रह 'यहीं कहीं से' शिल्पायन प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित हुआ है. इस संग्रह में कुल दस कहानियाँ ( रौखड़ , भंवर, प्रतिघात, यहीं कहीं से,नासूर, यह कोई लीला नहीं है, जेब, ढलान, मैं द्रौपदी नहीं हूँ, कोई है? ) संग्रहीत हैं.'एक तूफान की आस में' शीर्षक से इसकी जो भूमिका प्रसिद्ध कथाकार विद्यासागर नौटियाल जी ने लिखी है उसके कुछ अंश दॄष्ट्व्य हैं -
* शैलेय के इस कथा संग्रह 'यहीं कहीं से' में दी जा रही कहा कहानियों को पढ़ते हुए मैंने अपने को किसी दूसरे ही लोक में विचरण करते हुए पाया.
** इसमें कई कहानियाँ ऐसी लगीं जिनके विषयों से , मेरे खयाल में हिन्दी कथा जगत अभी तक करेब - करीब अनभिज्ञ है. कुदरत ने जहाँ कहीं भी प्रलय मचाई या समाज में जहाँ कहीं भी शोषण हुआ , उसी ओर लेखक की पैनी निगाह जा लगी. इसलिए ये कहानियाँ एक निश्चित स्थान से जुड़ी हुई नहीं हैं. पहाड़ से मैदान तक फैली हुई हैं.
*** शैलेय प्रतिभा के धनी एक समर्थ कवि हैं. कहानी के क्षेत्र में वे उसी कवि हृदय को लेकर प्रवेश कर रहे हैं. मुझे विश्वास है कि हिन्दी कथा जगत के पाठक उनका खुले दिल से स्वागत करेंगे.
अभी पिछले दिनों महिला समाख्या , उत्तराखंड और महादेवी सॄजन पीठ , कुमाऊँ विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में देहरादून में 'लोकगीतों में स्त्री' तीन दिवसीय ( २८ , २९ एवं ३० मार्च २००९ ) राष्ट्रीय संगोष्ठी हुई जो अपने आप में इसलिए अलग और विलक्षण मानी जाएगी कि इसमें आम सेमिनारों की तरह शोधपत्र वाचन जैसा कुछ भी नहीं था . यह आयोजन पूरी तरह उत्तराखंड और देश के विभिन्न क्षेत्रों के लोकगीतों के गायन और उनके माध्यम से स्त्री स्वर की अभिव्यक्ति व अनुगूँज का आकलन -विश्लेषण था। इस आयोजन में साहित्यकारों , लोक गायकों, संगीत प्रेमियों और सामाजिक कर्यकर्ताओं की उल्लेखनीय उपस्थिति थी. इस सुअवसर का लाभ लेते हुए सोचा गया कि क्यों न शैलेय के सद्य: प्रकाशित कहानी संग्रह 'यहीं कहीं से' का लोकार्पण भी हो जाय तो क्या कहने किन्तु 'लोकगीतों में स्त्री' का आयोजन शिड्यूल इतना व्यस्त था कि २९ मार्च की दोपहर में किताब का लोकार्पण सभागार के बाहर कार्यक्रम स्थल अकेता होटल के हरे - भरे प्रांगण में कथाकार विद्यासागर नौटियाल,आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी , आलोचक मैनेजर पांडेय, कवि लीलाधर जगूड़ी, कथाकार मैत्रेयी पुष्पा , निदेशक महिला समाख्या , उत्तराखंड गीता गैरोला , 'बया' पत्रिका के संपादक गौरीनाथ, कवि जितेन्द्र श्रीवास्तव, कथाकार नवीन नैथानी , शोधार्थी प्रदीप व अन्य मित्रों द्वारा द्वारा संयुक्त रूप से किया गया. इस अवसर पर कवि , कथाकारों , संपादकों , संस्कृति कर्मियों , पाठको की गरिमामयी उपस्थिति लंबे समय तक याद रहेगी. सबने शैलेय को बधाई दी और उन्होंने अपनी प्रति पर सबके हस्ताक्षर लिए. महत्वपूर्ण यह नहीं है कि इस अवसर पर किसने क्या - क्या किन शब्दों में कहा अपितु महत्वपूर्ण यह है कि यह पुस्तक विधिवत और समारोह पूर्वक लोक को समर्पित हुई. मुझे यह सौभाग्य मिला कि कि मैंने इस पूरे कार्यक्रम को अपने कैमरे में कैद किया जिसमें से कुछ चुनिंदा तस्वीरें यहाँ दी गई हैं.
शैलेय का का कहानी संग्रह ' यहीं कहीं से' अब लोक को अर्पित हो चुका है। मैं इसे पूरा पढ़ चुका हूँ ,इसलिए एक पाठक की हैसियत से निस्संकोच यह कह सकता हूँ कि यदि किसी को समकालीन हिन्दी कहानी के मिजाज को पकड़ने की मंशा है तो अवश्य ही 'यहीं कहीं से' के पन्नों से गुजरना चाहिए.
बहरहाल, शैलेय को दस अच्छी कहानियों के एक उम्दा और याद रखने लायक संग्रह के लिए बधाई !
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पुस्तक : यहीं कहीं से / लेखक : शैलेय / प्रकाशक : शिल्पायन , १०२९५ , लेन नं. १, वेस्ट गोरख पार्क, शाहदरा दिल्ली - ११००३२ / मूल्य : १७५ रुपये
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6 टिप्पणियां:
बधाई हो, बधाई !
शैलय जी को बहुत बहुत बधाई और आपका आभार। उन छणों को महसूस सका जिसमें उपस्थित न हो पाना सालता रहा।
जरूर नजर डालेंगे
shukriya is jaankari ko hum sab ke sath baantne ke liye
badhai.
बधाई हो। कुछ अच्छा पढ़ने के लिए चुनाव आसान हो गया। धन्यवाद।
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