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शैलेय हमारे समय के समर्थवान और संभावनाशील कवि है. अभी कुछ ही महीने पूर्व उनका
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* शैलेय के इस कथा संग्रह 'यहीं कहीं से' में दी जा रही कहा कहानियों को पढ़ते हुए मैंने अपने को किसी दूसरे ही लोक में विचरण करते हुए पाया.
** इसमें कई कहानियाँ ऐसी लगीं जिनके विषयों से , मेरे खयाल में हिन्दी कथा जगत अभी तक करेब - करीब अनभिज्ञ है. कुदरत ने जहाँ कहीं भी प्रलय मचाई या समाज में जहाँ कहीं भी शोषण हुआ , उसी ओर लेखक की पैनी निगाह जा लगी. इसलिए ये कहानियाँ एक निश्चित स्थान से जुड़ी हुई नहीं हैं. पहाड़ से मैदान तक फैली हुई हैं.
*** शैलेय प्रतिभा के धनी एक समर्थ कवि हैं. कहानी के क्षेत्र में वे उसी कवि हृदय को लेकर प्रवेश कर रहे हैं. मुझे विश्वास है कि हिन्दी कथा जगत के पाठक उनका खुले दिल से स्वागत करेंगे.
अभी पिछले दिनों महिला समाख्या , उत्तराखंड और महादेवी सॄजन पीठ , कुमाऊँ विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में देहरादून में 'लोकगीतों में स्त्री' तीन दिवसीय ( २८ , २९ एवं ३० मार्च २००९ ) राष्ट्रीय संगोष्ठी हुई जो अपने आप में इसलिए अलग और विलक्षण मानी जाएगी कि इसमें आम सेमिनारों की तरह शोधपत्र वाचन जैसा कुछ भी नहीं था . यह आयोजन पूरी तरह उत्तराखंड और देश के विभिन्न क्षेत्रों के लोकगीतों के गायन और उनके माध्यम से स्त्री स्वर की अभिव्यक्ति व अनुगूँज का आकलन -विश्लेषण
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शैलेय का का कहानी संग्रह ' यहीं कहीं से' अब लोक को अर्पित हो चुका है। मैं इसे पूरा पढ़ चुका हूँ ,इसलिए एक पाठक की हैसियत से निस्संकोच यह कह सकता हूँ कि यदि किसी को समकालीन हिन्दी कहानी के मिजाज को पकड़ने की मंशा है तो अवश्य ही 'यहीं कहीं से' के पन्नों से गुजरना चाहिए.
बहरहाल, शैलेय को दस अच्छी कहानियों के एक उम्दा और याद रखने लायक संग्रह के लिए बधाई !
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पुस्तक : यहीं कहीं से / लेखक : शैलेय / प्रकाशक : शिल्पायन , १०२९५ , लेन नं. १, वेस्ट गोरख पार्क, शाहदरा दिल्ली - ११००३२ / मूल्य : १७५ रुपये
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6 टिप्पणियां:
बधाई हो, बधाई !
शैलय जी को बहुत बहुत बधाई और आपका आभार। उन छणों को महसूस सका जिसमें उपस्थित न हो पाना सालता रहा।
जरूर नजर डालेंगे
shukriya is jaankari ko hum sab ke sath baantne ke liye
badhai.
बधाई हो। कुछ अच्छा पढ़ने के लिए चुनाव आसान हो गया। धन्यवाद।
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