आज शाम पुराने कागज -पत्तर तलाशते हुए पुरानी फाइलों में जानवरों पर लिखी अपनी पाँच कविताओं की एक सीरीज मिली. ये सब कभी किसी मौज में लिखी गई थीं.तब का समय और था -आज का समय और है फिर भी लगता है कि आज से कई बरस पहले के जीवन व जगत के अनुभव कमोबेश आज भी वैसे ही हैं .जिन कागजों पर ये लिखी गईं थी वे पीले पड़ चुके हैं लेकिन बात अब भी उजली और साफ -सी लगती है.अपने तईं यही सोचकर इन कविताऒं को प्रस्तुत कर रहा हूँ. शायद इनके जरिए 'कर्मनाशा' के पाठको से रुका हुआ संवाद गतिमान हो सके. तो प्रस्तुत हैं - जानवरों के बारे में पाँच कवितायें...
१. गधा
यह जो कहें
वही है भाषा
यह जो दिखायें
वही तमाशा
यह जो गायें वही गीत
जो इस कोरस में शामिल
उसके दुर्दिन गए बीत.
२. शेर
अब वह
गरजता नहीं , बरसता है
और
सारा जंगल
पानी के लिए
तरसता है.
३. कुत्ता
गरजता नहीं , बरसता है
और
सारा जंगल
पानी के लिए
तरसता है.
३. कुत्ता
वे प्यार से मिले
और हालचाल लिया
मैंने माँगा आशीष
उन्होने दिल खोल दिया
मैंने चाही विदा
वे द्वार तक छोड़ने आए
मैंने किया प्रणाम
वे मुस्कुराए
रास्ते भर मैं रहा परेशान
बार - बार याद आती रही
उनके फाटक पर टँगी तख्ती-
कुत्ते से सावधान !
४. बकरी
जानकारों ने बतलाया है
यह जग मिथ्या है माया है
अत: स्वत:
मिमियाती रह
घास खा
मांस कर दान
इसी में तेरा उद्धार
तेरा जीवन महान.
५. सियार
यह जो इंद्रधनुष है
मनुष्यों के कोलाहल में शोभायमान
यह सबकी छाया है
सबका रंग.
कौन नकली - कौन नक्काल
सबका एक -सा जीवन
एक जैसा ढंग.
हम सब सीधे - हम सब होशियार
तनी रहे नफरत
बना रहे प्यार
सब दुश्मन - सब यार।
यह जग मिथ्या है माया है
अत: स्वत:
मिमियाती रह
घास खा
मांस कर दान
इसी में तेरा उद्धार
तेरा जीवन महान.
५. सियार
यह जो इंद्रधनुष है
मनुष्यों के कोलाहल में शोभायमान
यह सबकी छाया है
सबका रंग.
कौन नकली - कौन नक्काल
सबका एक -सा जीवन
एक जैसा ढंग.
हम सब सीधे - हम सब होशियार
तनी रहे नफरत
बना रहे प्यार
सब दुश्मन - सब यार।
6 टिप्पणियां:
बहुत सही माल है जवाहिर चा ! मज़ेदार तो ये है कि ये माल वीरेन दा द्वारा जानवरों से वो अद्भुत चीज़ें माँगने से पहले का होगा .....पर दबा-छुपा रह गया
बहुत बढिया ... सब एक से एक ।
ऐसा लगा जैसे शीर्षक की बोर्ड की गलती से सियार छप गया ...जरा देखिये तो
यह जो इंद्रधनुष है
मनुष्यों के कोलाहल में शोभायमान
यह सबकी छाया है
सबका रंग.
कौन नकली - कौन नक्काल
सबका एक -सा जीवन
एक जैसा ढंग.
हम सब सीधे - हम सब होशियार
तनी रहे नफरत
बना रहे प्यार
सब दुश्मन - सब यार।
कुछ इस संसार की तस्वीर सी नहीं लगती ???
बहुत अच्छी कवितायें.
http://raginisinghrathaur.blogspot.com/
संवाद ..rukey nahi
कुत्ते से संबंधित कविता
विशेष रूप से पसंद आई!
जिस कुत्ते से प्रेरित होकर
आपने यह कविता रची,
उसने आपको बिल्कुल सही पहचाना!
वैसे सभी कुत्ते एसे होते नहीं हैं!
बहुत-बहुत बधाई!
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