बहुत दिन हुए ब्लाग पर आना नहीं हो पा रहा था। ऐसा नहीं है कि व्यस्तता इतनी अधिक थी कि समय न मिलने की बात करूँ , बस यूँ समझ लें कि मन नहीं हो रहा था। अभी कुछ दिन पहले भाई एस. बी. सिंह जी ने फोन कर इस गैरहाजिरी का सबब पूछा तो भला लगा कि अनदेखे मित्रों की एक अनदेखी दुनिया से हम रू-ब-रू हैं , यह देखना सुखद है । भाई रावेन्द्र रवि का कल मेल था कि कर्मनाशा शान्त क्यों है । पिछले इतवार को हल्दवानी में अशोक पांडे के साथ ब्लागर मीट भी हो गई। आज अनुनाद पर हिन्दी की युवा कविता पर कुछ लिखा है। सो अब नियमितता का क्रम बन रहा है ।इसी कड़ी में आज लिखी तीन छोटी कवितायें प्रस्तुत हैं साथ अपनी छत से / छत पर लिए गए तीन चित्र भी.
१-
अभी तक
यहाँ धुन्ध थी
कुहरे की एक चादर
महीन धागों से बुनी
साथ ही
कोई स्वर कोई धुन
जिसे हम करते रहे अनसुनी .
अभी तक
यहाँ धुन्ध थी
कुहरे की एक चादर
महीन धागों से बुनी
साथ ही
कोई स्वर कोई धुन
जिसे हम करते रहे अनसुनी .
२-
सूरज ने
मुँहदिखाई की नेग में
पेड़ पौधों को दिया रूप दिया रंग
फूल शूल भी
साथ - साथ
यही तो है जीने का ढंग।
मुँहदिखाई की नेग में
पेड़ पौधों को दिया रूप दिया रंग
फूल शूल भी
साथ - साथ
यही तो है जीने का ढंग।
३-
एक कली अधखिली
एक फूल खिला
एक इतराए
दूजा माटी में मिल जाए
दोनो मुदित
दोनो मगन
कुछ सीखा क्या ऐ मेरे मन ?
7 टिप्पणियां:
धुंध से निकलकर,
काँटों से फूलों पर,
फूलों से काँटों पर आए,
तो बखान कर दी
कम से कम शब्दों में
जीवन की बड़ी सच्चाई!
सूरज ने मुंहदिखाई में नेग दिया! वाह!
वाह बेहतरीन रचना। चल इतने दिन के बाद आए तो सही।
सूरज ने
मुँहदिखाई की नेग में
पेड़ पौधों को दिया रूप दिया रंग
फूल शूल भी
साथ - साथ
यही तो है जीने का ढंग।
waaaah, bahut khoob
कवितायों पर फोटू खींची कि फोटू पर कविता लिखी चचा?
आप लापता थे तो अपन भी लापता थे.
बहुत दिनों के बाद, कर्मनाशा की सुधि हो आई।
थोड़ा लिखा, लिखा अच्छा है, मेरी बहुत बधाई।
तीनों चित्र और क्षणिकाएँ, देती यह सन्देश।
फूल शूल में हँसता रहता, पाकर के परिवेश।
एक कली अधखिली
एक फूल खिला
एक इतराए
दूजा माटी में मिल जाए
दोनो मुदित
दोनो मगन
कुछ सीखा क्या ऐ मेरे मन ? ..
ji bhot kuch seekha yhan aakar...isi tarah sikhlalen rahen....shma ji ko ph kr link dene ke liye kha hai aati hi hongi...!!
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