सोमवार, 9 मार्च 2009

क्योंकि होली है और क्या !

होली पर क्या है ?
होली है और क्या !

कल से आज तक गुझिया , नमकीन , मिठाई , बेसन पापड़ी,मठरी बनाने का सिलसिला चल रहा है ; साथ में चखने के बहाने खाने का भी. एक खटका यह भी लगा हु है कि कहीं गैस सिलिन्डर साहब समय से पहले ही ओके ,टाटा , बाय - बाय न कर जायें. अरे , अभी दही बड़े और पूआ-पूड़ी तो बाकी ही है. क्या किया जाय अब आदमी त्योहार मनाना तो नहीं छोड़ देगा. ( मनाना = खाना ). अगल - बगल गाना - बजाना चल रहा है...होली के दिन गुल खिल जाते हैं ..अपनी छत के गमलों में लगे गुल तो मुरझाने की ओर अग्रसर हैं .फिर भी अपन छुट्टी की मौज कर रहे हैं. अब तो बच्चों का अगला पेपर भी एक सप्ताह के बाद है सो वे भी होलिया गए हैं. कुल ...मिलाकर होली है और क्या !

मार्च महीना बड़ा जालिमहोता है साठ -सत्तर के दशक के हिन्दी फिल्मी गानों में वर्णित बेदर्दी बालमा की तरह . हर महीने जो भी जित्ता बँधा - बँधाया नामा आता है उसका एक अच्छा -खासा हिस्सा इसी महीने 'आय' नहीं अपितु 'जायकर' में तब्दील हो जाता है. पहली अप्रेल अर्थात मूर्ख दिवस के दो दिन बाद से बच्चॊ के स्कूल का नया सत्रारम्भ होने वाला है , माने किताब -कापी, नया बस्ता - पानी की नई बोतल - नया लंच बाक्स - नये स्कूल यू्निफार्म , बिजली -टेलीफोन के बिल , बीमा - लोन इत्यादि की किस्तें ,राशन - पानी -कपड़े - लत्ते -जूते -चप्पल....अगड़म -बगड़म...फिर भी हिम्मत न हार चल चला चल...क्योंकि होली है और क्या !

'एक बरस में एक बार ही जलती होली की ज्वाला ' ऐसा सबसे बड़े बच्चन जी कह गए हैं. यह अलग बात है कि हम सब साल भर लगभग जलते रहने के लिए ही रह गए हैं. अपने आसपास जो भी घटायमान हो रहा है उसे निरन्तर देखायमान करते हुए चटायमान होते रहना और अपने मुखारविन्द पर विराजमान झींकायमान भाव को शोभायमान किए गड्डी को चलायमान किए रहना ही अपनी गति - दुर्गति है. होली के दिन मुदित - क्षुधित - द्रवित होकर यह केंचुल थोड़ी देर के लिए उतर जाती है और एक अदद दिन भर के वास्ते मौजा ही मौजा ,बाकी तो साल भर (अपना सर और) जुत्ता ही जूत्ता..अतएव एक दिन के लिए ही सही..... क्योंकि होली है और क्या !

कल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस था. अपन ने तो अभी पूरा राष्ट्र भी दे देख्या -वेख्या नहीं अंतर - राष्ट्र की बात तो बहुत दूर की है.स्त्रियन - नारियन - औरतन के हाल -हालात की बात पर तो बड़े -बड़े विद्वान ही सभा - सेमीनारों में बोले हैं ; कभू - कभू लब खोले हैं. अपन तो घर में विराजती अकेली महिला की पाक कला के कौशल और ज्ञान - विज्ञान के प्रेक्टिकल को सिर्फ स्वाद तक सीमित कर प्रशंसा के पकवान पकाते रहे और उसके श्रम में वांछित - यथोचित -किंचित साझा सहयोग करने के बजाय शर्मसार होते रहे. मेज पर झुके हुए एक घुन्ने आदमी की तरह फाग - राग, गीत - संगीत में डूबे उभ - चुभ करते रहे....क्योंकि होली है और क्या !

अगर फुरसत हो और मन करे तो आप इसे पढ़ लेवें .मन न होय तो आगे बढ़ लेवें क्योंकि हर तरफ होली हुड़दंग छाय रही है. भंग का रंग अब कम ही चकाचक हुआ करे है. जियादा पढ़ -लिख लिए सो गावन - बजावन से भी मन डरे है.बस दूर से तमाशा - थोड़ी आशा थोड़ी निराशा .हाट - बाजारों में माल बहुतायत है पर गाँठ में पीसे पूरे ना हैं फिर भी होली तो मनानी है ; अजी मनानी क्या रसम निभानी है.....क्योंकि होली है और क्या !

फिर भी
छोटा - सा टीका चुटकी भर गुलाल
आप रहें राजी-खुशी और खुशहाल
मुबारकबाद !
बधाई !
.....क्योंकि होली है और क्या !

11 टिप्‍पणियां:

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

भाई साहब,
जो भी लिखा है,
वह तो अच्छा है ही,
पर लड्डू देखने में
बहुत अच्छे लग रहे हैं!
निश्चित रूप से भाभीजी के
हाथों से बने हैं!
मन तो तुरंत आने को हुआ,
पर अभी खटीमा में नहीं हूँ ... ... .

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर लिखा है ... होली की ढेरो शुभकामनाएं।

Vineeta Yashsavi ने कहा…

holi ka ye andaaz achha laga...

holi ki shubhkaamnaye apko...

Ek ziddi dhun ने कहा…

चलिए खाइए पकवान, वे बनाती रहेंगी।

बेनामी ने कहा…

aapko holi ki shubhkaamnaayen

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

मौसम ने करवट बदली है,
तन-मन ने ली है अँगड़ाई।
गद्य-गद्य में गद्य-गीत की,
छवि मोहक आकर्षक पाई।

रस्म-रिवाजों त्योहारों को,
जीवित रखना होगा।
होली में गुझिया,मठरी का,
स्वाद परखना होगा।

Manish Kumar ने कहा…

होली को उतना तो enjoy नहीं किया मैंने पर ये मानता हूँ कि इस पर्व में ताकत है खुशियाँ बाँटने में पर लोग बाग इसको भी अपने हिसाब से कलुषित कर देते हैं.
बहरहाल लड्डू बढ़िया दिख रहे हैं, खाइए और पचाइए। होली की ढ़ेरों शुभकामनाओं के साथ !

महेन ने कहा…

"गुलज़ार सजे हों परियों के और महफिल की तैयारी हो,
उस रंग भरी पिचकारी को अंगिया पर तककर मारी हो,
सीनों से रंग ढलकते हों तब देख बहारें होली की..."

आप पकवान खाओ हम रंग खेलते हैं...

अनूप शुक्ल ने कहा…

जय हो! शानदार लिख मारा! होली मुबारक!

PREETI BARTHWAL ने कहा…

आपको होली की शुभकामनाएं।

ललितमोहन त्रिवेदी ने कहा…

शब्दों द्वारा चित्र खींचना तो कोई आपसे सीखे !पाठक को भी वहीँ खींच ले जाते है जहाँ आप है !इतना मज़ा तो कभी होली खेलने में भी नहीं आया जितना आपकी पोस्ट को पढ़कर आया !बहुत खूब सिद्धेश्वर जी !