गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

पिया बाज पियाला पिया जाए ना : दो जुदा रंग



( अभी एकाध दिन पहले भाई प्रशांत प्रियदर्शी ने अपने ब्लाग 'मेरी छोटी सी दुनिया' पर इसी पोस्ट के शीर्षक से मिलती - जुलती एक सुरीली पोस्ट लगाई थी जिस पर उन्होंने 'कबाड़ियों' का जिक्र किया था. कबाड़ी कबीले का एक अदना सदस्य होने नाते मैंने एक टिप्पणी की थी और प्रशांत जी का बड़प्पन देखिए कि उन्होंने उसका जिक्र करते हुए अपनी पोस्ट में तत्काल कुछ जोड़ / घटाव किया साथ ही एक प्यारा सा मेल इस नाचीज को लिखा. अपनी टिप्पणी में मैने वादा किया था कि 'पिया बाज पियाला पिया जाए ना' का जो रूप मेरे संग्रह में है जिसे जल्द ही 'कबाड़खाना' या 'कर्मनाशा' पेश करँगा . आज की यह पोस्ट उसी टिप्पणी और मेल के मिलेजुले सिलसिले से बन पाई है जिसे बहुत प्रेम के साथ पी० डी० भाई यानि प्रशांत प्रियदर्शी और निरन्तर समॄद्ध होते जा रहे हिन्दी ब्लाग की छोटी-सी दुनिया के सभी सम्मानित साथियों की सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ.)

पिया सूँ रात जगी है सो दिखती है सुधन सरखुश.
मदन सरखुश , सयन सरखुश , अंजन सरखुश,नयन सरखुश.

दक्षिण देशीय उर्दू काव्य के आरंभिक युग में सुलतान मुहम्मद क़ुली क़ुतुबशाह 'मआनी' (१५५० - १६११) अपने पूर्ववर्ती कवियों से इसलिए अलग दिखाई देते हैं कि सिद्धान्तों के प्रतिपादन और विषयबाहुल्य के निरूपण की अपेक्षा उन्होंने न केवल मानवीय पक्ष को प्रमुखता दी है बल्कि खालिस देसी रूपकों व उपमाओं का प्रयोग करते हुए दक़नी को फ़ारसी के प्रभाव से मुक्त कर एक ऐसी काव्यभाषा की प्रस्तुति की जो हिन्दी के बहुत निकट थी. उन्होंने देसी कथानकों , देसी चरित्रों , देसी वस्त्राभूषणों और देसी रीति - रिवाजों ही नहीं वरन अपने आसपास के त्योहारों ,फलों - फूलों - तरकारियों . चिड़ियों पर भी कविता रचना की है. इस नजरिये से वे नजीर अकबरादी के जोड़ के कवि माने जाते हैं.प्रथमदॄष्टया दोनों में एक स्पष्ट अंतर यह हो सकता है 'मआनी' सुलतान थे और नजीर साधारणजन के असाधारण जनकवि.

दिल माँग खुदा किन कि खुदा काम दिवेगा.
तुमनन कि मुरादन के भरे जाम दिवेगा
.

गोलकुंडा के कुतुबशाही वंश के इस कवि , नगर निर्माता और प्रेमी नरेश का शासनकाल १५८० से १६११ तक रहा . उनकी भाषा सत्रहवीं शताब्दी की उर्दू है - एक तरह से आधुनिक उर्दू और हिन्दी की उत्स-भूमि. इस दॄष्टि से वे आज की हिदुस्तानी भाषा के निर्माताओं में से हैं. 'उर्दू साहित्य कोश' ( कमल नसीम) के हवाले से यह एक रोचक जानकारी मिलती है कि क़ुली क़ुतुबशाह उर्दू के पहले कवि हैं जिनका दीवान प्रकाशित हुआ. इस कवि-शासक ने अपनी प्रेयसी भागमती के नाम प किस 'भागनगर' या 'भाग्यनगर' का निर्माण करवाया उसे आज सारी दुनिया आई० टी० के गढ़ हैदराबाद के नाम से जानती है.अपने इस 'प्रेमनगर' से बेइंतहा मोहब्बत करने वाला यह शायर दुआ करता है कि मेरा शहर लोगों से वैसे ही भरा - पूरा रहे जिस तरह पानी मछलियों से भरा - पूरा रहता है -

मेरा शह्र लोगाँ सूँ मामूर कर ,
रखाया जूँ दरिया में मिन या समी.



रचना : क़ुली कुतुबशाह
स्वर : तलत अजीज और जगजीत कौर
संगीत : खय्याम
अलबम : 'सुनहरे वरक़'

'पिया बाज पियाला पिया जाए ना' गीत के कई एक संगीतबद्ध रूप उपलब्ध होंगे. मुझे अपने सीमित संसार में केवल तीन रूपों की जानकारी अभी तक है. पहला तो 'हुस्न--जानां' वाला रूप जिसे प्रशांत कल सुनवा चुके हैं. दूसरा रूप आप ऊपर देख -सुन रहे हैं और एक अन्य रूप फ़िल्म 'भागमती : द क्वीन ऒफ़ फ़ॊरचून्स' (निर्देशक : अशोक कौल) में संकलित है जिसे रवीन्द्र जैन के संगीत निर्देशन में रूपकुमार राठौड़ और आशा भोंसले ने गाया है. यह तीसरा रूप एक तरह से 'पिया बाज पियाला पिया जाए ना' का 'अन्य रूप' इसलिए भी है यह क़ुली क़ुतुबशाह की रचना का प्रक्षिप्त , परिवर्धित अथवा इंप्रोवाइज्ड रूप है. आज की दुनिया में यह कोई नया प्रयोग नहीं है. अत: इसे सुन लेने में कोई हज्र नहीं है. तो लीजिए प्रस्तुत है - 'जिया जाए अम्मां जिया जाए ना...



टिप्पणी : यदि क़ुली कुतुबशाह के बारे में कुछ पढ़ने का मन हो तो 'Prince, Poet, Lover, Builder : Muhammad Quli Qutb Shah The Founder of Hyderabad' ( Narendra Luther) और 'Muhammad -Quli -Qutb Shah : Founder of Haidarabad' ( Haroon Khan Sherwani ) जैसी कुछ किताबें देखी जा सकती हैं.

8 टिप्‍पणियां:

PD ने कहा…

अभी अभी ऑफिस से घर आया हूं और बहुत जोरों से नींद भी आ रही है.. अभी तो बस इन गीतों डाऊनलोड करके आई-पॉड में डाल कर सुनते सुनते सो जाऊंगा.. कल सुबह उठ कर आपकी यह पोस्ट पढ़ता हूं.. वैसे अब आपकी कोई पोस्ट हमसे छूटेगी नहीं.. आपको मैंने अपने ब्लौग रौल में जोड़ लिया है.. :)

एस. बी. सिंह ने कहा…

बड़ी जानकारी पूर्ण साथ ही रससिक्त पोस्ट। रसार्द्र हो रहा हूँ। धन्यवाद

sanjay patel ने कहा…

चौतरफ़ा दुष्टता के आलम में बहुत दिनों बाद आपकी गली आया....बड़ी सुरीली लगी ये दुनिया.दिल को सुक़ून बख़्शा आपने.

बेनामी ने कहा…

दो वर्ज़न और याद आ रहे हैं.
1) वनराज भाटिया का संगीतबद्ध प्रीति सागर का गाया हुआ, फ़िल्म निशांत से
2) मल्लिका पुखराज का गाया हुआ

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

बहुत अच्‍छा जानकारी प्रद आलेख
महाशक्ति

बेनामी ने कहा…

तीनों रुप सुने.. पहले दो बार बार.. और तीसरा.. चंद लाइन ही सुन पाया... अच्छे से गाने की ऐसी तैसी कर दी.. अजीब सा कड़्वा स्वाद..

क्या इनको डाउनलोड कर सकतें है?

PD ने कहा…

अभी गौर से पढा.. मेरे लिये हर शब्द नई जानकारी जैसी ही थी.. कल रात सुना था, "जिया जाये अम्मा" वाला वर्सन कुछ पसंद नहीं आया..

रंजन जी ने पूछा है कि इसे कैसे डाऊनलोड करें.. रंजन जी, आप इस गीत के प्लेयर में जहां div Share लिखा है वहां क्लिक करें.. वो आपको गीत के लिंक तक ले जायेगा.. वहीं कहीं आपको डाऊनलोड का भी लिंक मिलेगा..

धन्यवाद

पारुल "पुखराज" ने कहा…

duusrey version ki khaasiyat ..sirf aasha ki aavaz hai..post behtareen hai...