( आजकल बारिश का मौसम है। ऐसे में ब्लाग पर बारिश को लेकर लिखी गई कविताओं की धूम है। बहुत सारी कवितायें है जो याद आ रही हैं या जिन्हें शेयर करना अच्छा लगेगा. ऐसे में 'कर्मनाशा' के पाठकों के लिए प्रस्तुत है सफ़दर हाशमी की कविता 'पहली बारिश'।)
पहली बारिश
रस्सी पर लटके कपड़ों को सुखा रही थी धूप.
चाची पिछले आँगन में जा फटक रही थी सूप।
गइया पीपल की छैयाँ में चबा रही थी घास,
झबरू कुत्ता मूँदे आँखें लेटा उसके पास.
राज मिस्त्री जी हौदी पर पोत रहे थे गारा,
उसके बाद उन्हें करना था छज्जा ठीक हमारा.
अम्मा दीदी को संग लेकर गईं थीं राशन लेने,
आते में खुतरू मोची से जूते भी थे लेने।
तभी अचानक आसमान पर काले बादल आए,
भीगी हवा के झोंके अपने पीछे-पीछे लाए.
सब से पहले शुरू हुई कुछ टिप-टिप बूँदा-बाँदी,
फिर आई घनघोर गरजती बारिश के संग आँधी.
मंगलू धोबी बाहर लपका चाची भागी अंदर,
गाय उठकर खड़ी हो गई झबरू दौड़ा भीतर.
राज मिस्त्री ने गारे पर ढँक दी फ़ौरन टाट.
और हौदी पर औंधी कर दी टूटी फूटी खाट.
हो गए चौड़म चौड़ा सारे धूप में सूखे कपड़े,
इधर उधर उड़ते फिरते थे मंगलू कैसे पकड़े.
चाची ने खिड़की दरवाज़े बंद कर दिए सारे,
पलंग के नीचे जा लेटीं बिजली के डर के मारे.
झबरू ऊँचे सुर में भौंका गाय लगी रंभाने,
हौदी बेचारी कीचड़ में हो गई दाने-दाने.
अम्मा दीदी आईं दौड़ती सर पर रखे झोले,
जल्दी-जल्दी राशन के फिर सभी लिफ़ाफ़े खोले.
सबने बारिश को कोसा आँखें भी खूब दिखाईं,
पर हम नाचे बारिश में और मौजें ढेर मनाईं.
मैदानों में भागे दौड़े मारी बहुत छलांगें,
तब ही वापस घर आए जब थक गईं दोनों टाँगें।
((कविता 'कविता कोश' से और chitra 'ट्रिब्यून इंडिया' से साभार)
9 टिप्पणियां:
बहुत खूब, सिद्धेश्वर जी बहुत बहुत खूब
ise kehte hain jeevan aur jeevan kee bhasha. kamaal hee hai sahab!
क्या कहूँ...कमाल के इंसान थे सफ़दर साहेब...कितने सरल शब्दों में बारिश का मंज़र खींच के रख दिया है उन्होंने...लगता है जैसे सब अपनी आंखों के सामने ही घट रहा हो... ऐसी बेमिसाल रचना पढ़वाने का तहे दिल से शुक्रिया.
नीरज
सफदर हाशमी साहब की रचना पेश करने का आभार.
safdarji ki kavita padhane ke liye aabhar.
बरसातों में एक और अच्छी कविता. शुक्रिया सरजी!
सफ़दर का नम सुनकर खींचा चला आया ओर निराश नही हुआ....वो लोग कुछ ओर थे
bahut pyari kavita dhoondh kar laye aap. yahan pesh karne ke liye shukriya.
बहुत मजेदार कविता पढवाने का शुक्रिया
- लावण्या
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