सर्दियों में शहर
(एक दो दिन हुये जब से समाचारों में सुना-पढा-देखा है कि नैनीताल में मौसम का पहला हिमपात हुआ है तब से मन में कुछ्कुछ हो रहा है.वहां की ठंडक अपनी हथेलियों पर नहीं बल्कि ह्रिदय में मह्सूस कर रहा हूं.शायद लगभग पूरा शहर सफेदी की चादर में लिपट कर सो रहा होगा.वैसे कोई भी मौसम हो यह प्रायः शहर ऊंघता-अनमना सा ही रह्ता है. आज से कई बरस पहले सम्भवतः १९८६-८७ में ऐसी ही किसी ठन्डी रात के गुनगुने एकान्त संगीत के साथ यह कविता लिखी थी.पूरा तो याद नहीं लेकिन इतना जरूर याद है कि रात थी,कंपकंपा देने वाली सर्दी थी,बर्फ गिर रही थी और मैं कविता जैसा कुछ लिख रहा था.प्रस्तुत है वही ठन्ड वाली कविता.)
शहर में सर्दियों का मौसम है
हवा में नमी है
धूप में खुशनुमा उदासी है
अभी बस अभी बर्फ गिरने ही वाली है
और शहर चुपचाप सो रहा है।
सो रही है झील
सो रहे हैं पहाड़.
मेरा शहर जागती आंखों में सो रहा है.
शहर की आंखों में एक नींद है
जो जाग रही है
शहर की आंखों में एक सपना है
जो सो रहा है।
आजकल लगभग आधा शहर
हल्द्वानी की तरफ नीचे उतर गया है
बस बच गई है नींद
बच गये हैं सपने.
बच्चे घरों में कैद हैं
उनके स्कूल की युनिफार्म्
छत पर धूप में सूख रही है
और किताब-कापियों के बीच
छुट्टियों की बर्फ भर गई है
जो शायद फरवरी के बाद ही पिघलेगी।
औरतों का वक्त
अब चुप्पी को सुनते हुये गुजरता है
आश्चर्य है कि वे फिर भी जी रही हैं
मर्द लोगों के पास
बातें है,किस्सें है,किताबें हैं,शराब है
और वे अलाव की तरह सुलग रहे हैं
लड़कियां
अपनी कब्रगाहों में निश्शब्द दफ्न हैं
उनके पास देखने के लिये
ग्रीटिन्ग कार्डस और सपने हैं
उनके पास बोलने को बहुत कुछ है
लेकिन वे जाडों के बाद बोलेंगी।
सोने दो शहर को
वह लोरी और थपकियों के बिना भी
लम्बी-गहरी नींद सो सकता है
मेरा शहर कोई जिद्दी बच्चा नहीं है.
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर चित्र खींचा है आपने ठंड में सोये शहर का । धन्यवाद ।
मॉं : एक कविता श्रद्वांजली
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