नदी
चली जायेगी
यह कभी न ठहरेगी ।
रुकना तो बस खुद को पड़ता है
झुकना तो बस खुद को पड़ता है
इस दुनिया के जातें के पाटों के बीच
पिसना तो बस खुद को पड़ता है ।
नदी कहाँ सुनती है जग की बात
उसको बस चलना ही है दिन रात
जहाँ जिधर भी मिल जाये इक रह
उसको क्या है इस- उसकी परवाह ।
अपनी यह नदिया भी चलती जायेगी
मन की शायद कुछ बाधा आएगी !
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