
* * *'कर्मनाशा' पर इधर कुछ समय से अपनी और अनूदित कविताओं की आमद अपेक्षाकृत अधिक रही है और यह भी कि अपनी कई तरह की व्यस्तताओं और यात्राओं के कारण बहुत कम पोस्ट्स लिख पाया हूँ। वैसे भी ब्लागिंग के वास्ते इतना ( ही / भी ) समय निकल पा रहा है यह कोई कम अच्छी बात नहीं है ! आज बहुत दिनों बाद कुछ संगीत साझा करते हैं आपके साथ । तो आइए सुनते हैं नासिर काजमी साहब की एक ग़ज़ल आबिदा परवीन के जादुई स्वर में ...
तेरे आने का धोका - सा रहा है।
दिया सा रात भर जलता रहा है।
अजब है रात से आँखों का आलम,
ये दरिया रात भर चढ़ता रहा है।
सुना है रात भर बरसा है बादल,
मगर वह शहर जो प्यासा रहा है।
वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का,
जो पिछली रात से याद आ रहा है।
किसे ढूँढोगे इन गलियों में 'नासिर',
चलो अब घर चलें दिन ढल रहा है।