शिशिर का हुआ नहीं अंत
कह रही है तिथि कि आ गया वसंत !
शिशिर की कँपन का अभी अंत नहीं हुआ है किन्तु तिथि तो कह रही है वसन्त आ गया है। कैलेन्डर - पंचांग बता रहे हैं कि आज वसंत पंचमी है। वसंतागम के साथ ही आज मुझे अपनी एक कविता 'कहाँ है वसंत' को साझा करने का मन हुआ है जो बहुत पहले प्रकाशन विभाग की मासिक पत्रिका 'आजकल' के युवा लेखन अंक में छपी थी। आइए , इसे देखते - पढ़ते हैं.....
कहाँ है वसंत
कहाँ है वसंत
आओ मिलकर खोजें
और खोजते-खोजते थक जाएँ
थोड़ी देर किसी पेड़ के पास बैठें
सुस्तायें
काम भर ऑक्सीजन पियें
और फिर चल पड़ें
कहीं तो होगा वसंत!
अधपके खेतों की मेड़ से लेकर
कटोरी में अंकुरित होते हुए चने तक
कवियों की नई-नकोर डायरी से लेकर
स्कूली बच्चों के भारी बस्तों तक
एक-एक चीज को उलट-पुलट कर देखें
चश्मे का नम्बर थोड़ा ठीक करा लें
लोगों से खोदखोदकर पूछें
और बस चले तो सबकी जामातलाशी ले डालें।
कहीं तो होगा वसंत !
आज ,अभी, इसी वक्त
उसे होना चाहिए सही निशाने पर
अक्षांश और देशांतर की इबारत को पोंछकर
उभर आना चाहिए चेहरे पर लालिमा बनकर।
वसंत अभी मरा नहीं है
आओ उसकी नींद में हस्त्क्षेप करें
और मौसम को बदलता हुआ देखें।
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11 टिप्पणियां:
कहीं अटक गया है रास्ते में ,आ रहा होगा वसन्त!
बहुत सुंदर !
मौसम बन कर आता है, पहचानने वाले उसी में पहचान लेते हैं।
मन का वसंत कौन मौसम देखता है !
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक कल चर्चा मंच पर है
आभार
वसंत भी रास्ता भटक गया होगा कोलंबस की तरह !
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सियासत “आप” की !
वसंत अभी मरा नहीं है
आओ उसकी नींद में हस्त्क्षेप करें
और मौसम को बदलता हुआ देखें।
basant bhatak gaya jaldi aa jayega basant .... shubhkamnayen
सुन्दर....वसन्त को नई तरह से देखने की कोशिश....।
कवि तनिक भीतर भी तो खोज लेना बसंत को!
सुन्दर रचना
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