आज छुट्टी है। आज सर्दी कुछ कम है।आज बारिश का दिन भी है।आज कई तरह के वाजिब बहाने मौजूद हो सकते हैं घर से बाहर न निकलने के। यह भी उम्मीद है लिखत - पढ़त वाले पेंडिंग कुछ काम आज के दिन निपटा दिए जायें और साथ यह विकल्प भी खुला है कि आज कुछ न किया जाय; कुछ भी नहीं। हो सकता है कि अकेले देर तक टिपटिप करती बारिश को देखा -सुना जाय शायद इसी बहाने अपने भीतर की बारिश को महसूस किए जा सकने का अवसर मिल सके। इस बात का एक दूसरा सिरा यह भी हो सकता है कि इस बात पर विचार किया जाय कि बाहर की बारिश से अपने भीतर की बारिश को देखने- सुनने की वांछित यात्रा एक तरह से जीवन - जगत के बहुविध झंझावातों से बचाव व विचलन का शरण्य तो नहीं है ? आज लगभग डेढ़ बरस पहले लिखी अपनी एक कविता साझा करने का मन है जो अपने कस्बे के एक प्रमुख चिकित्सक से वार्तालाप - गपशप के बाद कुछ यूं ही बनी थी। आइए, पढ़ते - देखते हैं यह कविता ....
काम :०२
जब हम कुछ भी नहीं कर रहे होते हैं
तब भी कर रहे होते हैं एक अनिवार्य काम।
बिस्तर पर
जब लेटे होते हैं निश्चेष्ट श्लथ सुप्त शान्त
तब भी
चौबीस घंटे में पूरी कर आते हैं
पच्चीस लाख किलोमीटर की यात्रा।
पृथ्वी करती रहती है अपना काम
करती रहती है सूर्य की प्रदक्षिणा
और उसी के साथ पीछे छूटते जाते हैं
दूरी दर्शने वाले पच्चीस लाख मील के पत्थर।
यह लगभग नई जानकारी थी मेरे लिए
जो डा० भटनागर ने यूँ ही दी थी आपसी वार्तालाप में
उन्हें पता है पृथ्वी और उस पर सवार
जीवधारियों के जीवन का रहस्य
तभी तो डाक्साब के चेहरे पर खिली रहती है
सब कुछ जान लेने के बाद खिली रहने वाली मुस्कान।
आशय शायद यह कि
कुछ न करना भी कुछ करना है
एक यात्रा है जो चलती रहती है अविराम
अब मैं खुश हूँ
दायित्व बोझ से हो गया हूँ लगभग निर्भार
कि कुछ न करते हुए भी
किए जा रहा हूँ कुछ काम
लोभ लिप्सा व लालच के लालित्य में
उभ - चुभ करती इस पृथ्वी पर
निश्चेष्ट श्लथ सुप्त शान्त
बस आ- जा रही है साँस।
फिर भी संशय है
अपनी हर हरकत पर
अपने हर काम पर
हर निर्णय पर
निरर्थकता के सौर मंडल में
हस्तक्षेप विहीन परिपथ पर
बस किए जा रहा हूँ प्रदक्षिणा - परिक्रमा चुपचाप।
एक बार नब्ज़ तो देख लो डाक्साब !
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( चित्र : बेन विल की कलाकृति 'द जर्नी फारवर्ड' / गूगल छवि से साभार)
5 टिप्पणियां:
काम में काम
करना है आराम
मगर वह भी है
एक जरूरी काम!
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इसी का नाम
दिनचर्चा है!
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
काम का काम
और आराम का आराम!
प्रकृति सदा ही गतिशील बनी रहती है।
सही फ़रमाया!
सुन्दर प्रस्तुति
लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
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