नवंबर के बीतते महीने का आज का दिन + यह रात (भी )। आज ठंड थोड़ी कम -सी है। ऊपर असमान में देखा तो पता चला कि हल्के बादल छाए हुए हैं और उनके बीच से इक्का - दुक्का सितारे भी झाँकने की कोशिश कर रहे रहे है। अभी कुछ ही देर पहले बूँदाबाँदी भी होकर चुकी है। बाहर रात, ठंड और ओस के अतिरिक्त भी आर्द्रता की पर्याप्त उपस्थिति है। और अंदर कमरे में लगभग एक सप्ताह पहले आधा पढ़ कर रख दी गई कविता की किताब में बुकमार्क की शक्ल में एक कागज मिला है जिस पर एक कविता लिखी है स्वयं की , स्वयं की टेढ़ी - मेढ़ी लिखावट में। उस छोटे- से कागज पर जो कुछ भी स्याही और कलम के माध्यम से अभिव्यक्त हुआ है वही अब मशीन पर टाइप होकर आपके समक्ष प्रस्तुत है। तो आइए , साझा करते हैं आज अपनी इस ताजा कविता को....
कविता की किताब
ऊँचे आकाश में पींग भरती पतंग
बार - बार झुक रही है घर की ओर
खिड़की की जाली पर
ठोर रगड़ रही है एक नीली चिड़िया
पीपल का एक हरा पता
चक्कर काटते काटते
गिर कर थम गया है गेट के आसपास
अभी तक जाग रही है
सुबह जलाई गई अगरबती की सुवास
रह - रह कर सिहर रहे हैं
खिड़की दरवाजों के परदे
गमले में खिल गया है
अधखिला लाल फूल
कुछ खास है यहाँ आज शायद...!
ओह , मेज पर खुली पड़ी है कविता की किताब
और मोबाइल में अवतरित हुआ है
तुम्हारा टटका - सा एस.एम.एस. ।
4 टिप्पणियां:
अहा..
वाह, बहुत खूब
ऋतु परिवर्तन की कविता है न ? :-)
एक भाव भरा ,पानी की बस अभी टपक जाने वाली बूँद जैसा क्षण बंद है इन कुछ पंक्तियों में !
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