विश्व कविता के अनुवादों के अध्ययन -पठन व साझेदारी के जारी क्रम में आज यह सूचना साझा करने का मन है कि 'कल के लिए' पत्रिका के नए अंक में मिस्र की युवा कवयित्री फातिमा नावूत की तीन कवितायें ( 'जब मैं कोई देवी बनूँगी' ,'स्केचबुक' और 'तुम्हारा नाम रेचल कोरी है' ) प्रकाशित हुई हैं। इन कविताओं का अनुवाद करते हुए मैंने सुन्दर , सहज व सुघड़ कविता के साहचर्य व आस्वाद का अनुभव किया है। उम्मीद है कि विश्व कविता की व्यापकता व गहराई को अनुवादों की दुनिया के माध्यम से पढ़ने , परखने तथा पहचानने वाले प्रेमियों को भी ये अच्छी लगेंगीं। आज प्रस्तुत है इस कविता त्रयी में से एक कविता 'स्केचबुक'....। बाकी दो कविताओं के लिए 'कल के लिए' के अद्यतन अंक को देखा जा सकता है....
फातिमा नावूत की कविता
(अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह)
स्केचबुक
चालीस की उम्र में
औरतों के बैग थोड़े बड़े हो जाते हैं
ताकि उनमें अँट सकें
ब्लड प्रेशर की गोलियाँ और मिठास के डल्ले ।
नजर को ठीक करने के वास्ते
चश्मे भी
ताकि चालाक अक्षरों को पढ़ा जा सके इत्मिनान से ।
बैग की चोर जेब में
वे रखती हैं जरूरी टिकटें तथा कागजात
हिचकी की रोकथाम करने का नुस्खा भी।
वे रखती हैं एक अदद मोमबत्ती
जो रात में चुपके से आकर
रेत देते है औरतों की गर्दनें ।
वे बैग में रखती हैं वसीयतनामा :
मेरे पास हैं 'रंगों के निशान'
( जो हाथों में आकर अटक जाते हैं
जब कोई तितली इन पर बैठ जाती है )
मेरे पास है एक स्केचबुक
और एक ब्रश
- एक अकेली औरत की तरह -
जिसे सौंपती हूँ मैं अपने मुल्क को ।
चालीस की उम्र में
मोजों से झाँकने लगते हैं घठ्ठे
और जब शुक्रवार की रात को
तितलियाँ छोड़ देती हैं इस घर का बसेरा
तब हृदय हो जाता है किसी खाली बरतन की मानिन्द
वे कहाँ जाती होंगी भला ?
शायद राजधानी के पूरबी छोर पर रहने वाली
किसी अच्छी मामी, चाची, फूफी, मौसी के कंधों पर
जमाती होंगीं अपना डेरा ।
एक ..दो ..तीन ..चार ..पाँच ..छह..
छह रातें..
एक चुप , उदास औरत
अपनी बालकनी में बैठकर
तितलियों की वापसी का करती है इंतजार ।
चालीस की उम्र में
एक औरत बताती है अपनी पड़ोसन को
कि मेरा एक बेटा है
जिसे नापसंद है बोलना - बतियाना ।
इससे पहले कि वह कहे -
अम्मी , तुम जाओ
अब मैं ठीक हूँ
अब मैं बड़ा हो गया हूँ..
.....हे ईश्वर ! मुझे थोड़ा वक्त तो दो खुद के वास्ते ।
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( चित्रकृति : लौरी पेस की पेंटिंग 'एग्जॉस्टेड वुमन' / गूगल छवि से साभार)
8 टिप्पणियां:
badhiya kavitaa ..sundar Anuvaad
सुन्दर रचना का अनुवाद पढ़वाने के लिए शुक्रि्या!
एक बहुत अच्छी कविता का बहुत-बहुत अच्छा अनुवाद. 'मिठास के डल्ले', 'चोर जेब', 'घठ्ठे'... लग रहा है इसे हिंदी में ही लिखा गया हो.
शुक्रिया आपको!
A very nice translation of a very good poem,
एक बेहतरीन रचना
मनोज जी से सहमत, कुछ शब्दों ने इस कविता का मिजाज़ एकदम देसी कर दिया है और यही आपके अनुवाद की विशेषता भी है! बहुत सुंदर अनुवाद......
मनोज जी से सहमत...
बेहतरीन अनुवाद...
खूबसूरत अनुवाद और कविता के लिए आभार
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