इस संसार के भीतर ही एक और संसार भी है - आभासी संसार। यह जितना कुछ बाहर है उतना ही भीतर भी। हमारे संसार में संचार के साधनों की निर्मिति , व्याप्ति और प्रयुक्ति का दाय कितना है ; यह विमर्श का विषय हो सकता है किन्तु हमारे जीवन में वह कैसा है यह लगभग सब देख रहे हैं। न केवल देख रहे हैं बल्कि उसके देखे जाने के एक टूल के रूप स्वयं की निजता को भी अलंघ्य तथा अलक्षित कर रहे है। हमारी इसी दुनिया में इंटरनेट ने एक ऐसी दुनिया रची है जो दुनियावी यथार्थ के बरक्स एक दूसरी तरह की दुनिया के यथार्थ को गढ़ने में लगी है जिसका आभास हमें है भी और संभवत: नहीं भी। इसी दुनिया में , इसी जीवन में इंटरनेट का (भी) एक जगत व जीवन है जिसे हम आज प्रस्तुत जर्मन कवि मारिओ विर्ज़ की इस छोटी - सी कविता के जरिए निरख - परख सकते हैं।
मारिओ विर्ज़ की कविता
इंटरनेट लाइफ़
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह )
आभासी समुद्र की सतह पर
संतरण कर रहा हूँ मैं अबाध
हर आकार में
मैं अविष्कृत कर रहा हूँ
सर्वशक्तिमान देवों के बीच एक देव
स्वयं के लिए ।
उदारता से मैं डुबो देता हूँ
अनिश्चित भाग्य को
सात सेकेंड में गढ़ देता हूँ एक दुनिया
और तिरोहित देता हूँ समूचा आख्यान
इस बात को कोई जानता है तो महज माउस।
एक कुंजीमात्र से
मैं इरेज कर देता हूँ मृत्यु को
और सेव कर लेता हूँ
सौन्दर्य
युवापन
अनश्वरता
और
कुछ समय के लिए
नहीं फटकता मेरे पास जीवन।
----
4 टिप्पणियां:
बहुत अलग सी कविता
i alaways feel -computer and inter-net are inventions of a MUTANT.
आभासी संसार मन को ऐसा अभिभूत कर देता है -जैसे अपने हाथों एक लोक रच लिया हो(चाहे जब देखे और फिर सँजो ले)!
चर्चा मंच और प्रवीण पांडे जी के ब्लॉग की प्रथम पंद्रह में शुमारी के लिए बधाई .
अध्ययन और अभिव्यक्ति की साझेदारी
शनिवार, 10 नवम्बर 2012
आभासी समुद्र की सतह पर
इस संसार के भीतर ही एक और संसार भी है - आभासी संसार। यह जितना कुछ बाहर है उतना ही भीतर भी। हमारे संसार में संचार के साधनों की निर्मिति , व्याप्ति और प्रयुक्ति का दाय कितना है ; यह विमर्श का विषय हो सकता है किन्तु हमारे जीवन में वह कैसा है यह लगभग सब देख रहे हैं। न केवल देख रहे हैं बल्कि उसके देखे जाने के एक टूल के रूप स्वयं की निजता को भी अलंघ्य तथा अलक्षित कर रहे है। हमारी इसी दुनिया में इंटरनेट ने एक ऐसी दुनिया रची है जो दुनियावी यथार्थ के बरक्स एक दूसरी तरह की दुनिया के यथार्थ को गढ़ने में लगी है जिसका आभास हमें है भी और संभवत: नहीं भी। इसी दुनिया में , इसी जीवन में इंटरनेट का (भी) एक जगत व जीवन है जिसे हम आज प्रस्तुत जर्मन कवि मारिओ विर्ज़ की इस छोटी - सी कविता के जरिए निरख - परख सकते हैं।
मारिओ विर्ज़ की कविता
इंटरनेट लाइफ़
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह )
आभासी समुद्र की सतह पर
संतरण कर रहा हूँ मैं अबाध
हर आकार में
मैं अविष्कृत कर रहा हूँ
सर्वशक्तिमान देवों के बीच एक देव
स्वयं के लिए ।
उदारता से मैं डुबो देता हूँ
अनिश्चित भाग्य को
सात सेकेंड में गढ़ देता हूँ एक दुनिया
और तिरोहित देता हूँ समूचा आख्यान
इस बात को कोई जानता है तो महज माउस।
एक कुंजीमात्र से
मैं इरेज कर देता हूँ मृत्यु को
और सेव कर लेता हूँ
सौन्दर्य
युवापन
अनश्वरता
और
कुछ समय के लिए
नहीं फटकता मेरे पास जीवन।
----सुन्दर भावानुवाद .आविष्कृत लिखें अविष्कृत को .शुक्रिया .
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