रात लगभग आधी बीत ही चुकी। लेकिन बात कुछ ऐसी है कि 'रह न जाए बात आधी।' घड़ी का काँटा १२ के डिजिट को विजिट कर उस पार की यात्रा पर निकल गया। अब तो डेट भी बिना लेट किए करवट बदल ली। २७ की अठ्ठाइस हो चुकी। लेकिन बात तो आज ही की है; आज ही की शाम की है.....ये शाम कुछ अजीब थी....
आज शाम एक ताना सुनने को मिला कि मैं बहुत 'कर्री' और लगभग 'गद्द नुमा कवितायें' लिखने लग पड़ा हूँ। प्रोफ़ेसरी अपनी जगै है और कविता अपनी जगै। कविता तो भई वई है जिसमे लय होय, तुक होय और देखने - पढ़ने में एक अच्छी - सी लुक होय। लगे हाथ और बिल्कुल फ़्री में एक अदद नसीहत भी मिली कि भय्ये कभी कुछ हल्का- फुल्का भी लिख लिया करो। ये कोई अच्छी बात तो नहीं है कि हर बखत माथे पर बल पड़ा रवे और मुस्कुराहट को तरसते चेहरे के पतंग की डोर में थोड़ी ढील न दी जा सके। रात साढ़े नौ- पौने दस बजे कस्बे के एक बौद्धिक जमावड़े से घर की लौटते हुए कुछ सोचा किया और गूगल के जन्मदिन पर कुछ कागज पर गेर दिया । वही माल अब कंपूटर के धरम काँटे पर भी मौजूद है। ल्यो साब ! अब आपको कैसी लगे क्या पता किन्तु - परन्तु -लेकिन मेरी समझ से जे एक हल्की - फुल्की-सी कवितानुमा पेशकश.... उससे पहले पूर्वरंग या प्रीफेस..
कलम हाथ से छुट गई , की-बोर्ड माउस हाथ।
जब देखो तब बना रहे , कंप्यूटर का साथ ॥
कंप्यूटर का साथ , विराजतिं इंटरनेट रानी।
उसी लोक की आज सुनाते , अकथ कहानी ॥
नेट दुनिया में राजते , गूगल जी महाराज ।
सुनो ध्यान से चालू आहे उनका किस्सा आज॥
कलम हाथ से छुट गई , की-बोर्ड माउस हाथ।
जब देखो तब बना रहे , कंप्यूटर का साथ ॥
कंप्यूटर का साथ , विराजतिं इंटरनेट रानी।
उसी लोक की आज सुनाते , अकथ कहानी ॥
नेट दुनिया में राजते , गूगल जी महाराज ।
सुनो ध्यान से चालू आहे उनका किस्सा आज॥
सब कुछ गूगलमय
गूगल जी का जन्मदिवस है , हैप्पी बड्डे आज।
इंटरनेट की इस दुनिया में बनें उन्हीं से काज ॥
डे नाइट खिदमत करने में रहें सदा ही तत्पर।
खोज-खाजकर ले आते हैं हर क्वेस्चन का उत्तर॥
देश वेश भाषा और यूजर उनके लिए सब यकसां।
देख - देख कर उनको बिसुरे, घर का बुद्धू बक्सा॥
कुंजी और किताबों में जो , भरी ज्ञान की थाती।
बस एक क्लिक करते ही वह तो पास हमारे आती॥
बच्चे बूढ़े और यंगस्टर्स, हर इक है बलिहारी।
जिसको देखो वो ही गाए , गूगल विरद तुम्हारी ॥
जय हो जय हो सचमुच जय हो गूगल जी की जय।
आज तुम्हारे बड्डे पर तो सब कुछ गूगलमय॥
13 टिप्पणियां:
देसी तड़के का स्वाद है भइया :-)
काव्यमयी प्रस्तावना, मन गलगल गुगलाय ।
शब्दों का यह तारतम्य, रहा गजब है ढाय ।
रहा गजब है ढाय, बोलते हैप्पी बड्डे ।
घर घर बनते जाँय, अति मनोरंजक अड्डे ।
मानव जीता जगत, किन्तु गूगल से हारा ।
गूगल जयजयकार, तुम्ही इक मात्र सहारा ।
गूगलबाबा को ढेरों शुभकामनायें।
आज 28- 09 12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
.... आज की वार्ता में ... व्यस्तता नहीं , अर्थपूर्ण व्यस्तता आवश्यक है .... ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (29-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
कुंजी और किताबों में जो , भरी ज्ञान की थाती।
बस एक क्लिक करते ही वह तो पास हमारे आती॥
बच्चे बूढ़े और यंगस्टर्स, हर इक है बलिहारी।
जिसको देखो वो ही गाए , गूगल विरद तुम्हारी ॥
सही हल्का फुल्का भी सच्चा भी ।
बहुत ही सुन्दर तरीके से गूगल जी का वर्णन किया है !!
वाह क्या मुलायम कविता है।
बच्चे बूढ़े और यंगस्टर्स, हर इक है बलिहारी।
जिसको देखो वो ही गाए , गूगल विरद तुम्हारी ॥
बिन गूगल सब सून भैया ,बिन गूगल सब सून
दिल्ली देहरादून भैया ,कहीं न मिले सुकून
बिन गूगल सब सून भैया ,बिन गूगल सब सून .
बहुत बढ़िया प्रस्तुति है खड़ी बोली का बढिया प्रयोग किया है आंचलिक अंदाज़ में .
साजन गूगल एक से,नींद उड़ायें रात
खाना पीना छुट गया,भूले करना बात
भूले करना बात,नेट पर ही चैटियाते
बिजली होती गोल,विरह के नगमें गाते
लागी नाही छूटे ,दुनियाँ समझे पागल
नींद उड़ायें रात,एक से साजन गूगल ||
Google is the best thing ever happened to mankind.
प्रोफ़ेसरी अपनी जगै है और कविता अपनी जगै। कविता तो भई वई है जिसमे लय होय, तुक होय और देखने - पढ़ने में एक अच्छी - सी लुक होय।
हिन्दी विभाग है तो ठीक है।
बाकी के प्रोफेसर कविता कैसे लिख रहे हैं?
आर टी आई लगानी पडे़गी अब तो !
देसी तेवर वाली कविता
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