इस समय गर्मी अपने चरम पर है। सही बात है गर्मी अपने चरम पर है तभी तो मौसम खूब गरम है। ऐसे में कहीं जाना मानो वही सब कुछ जिसे शायरी में कहा गया है 'आग का दरिया और डूब के जाना'। फिर जब जाना है तो जाना है , कोई नहीं बहाना है। झोले में रख दिया गया है सब सामान ; अब ट्रेन का टिकट भी प्रिन्ट कर लो हे श्रीमान। सुबह - सुबह नौकरी पर जाना है, वहाँ से लौटकर खाना खाकर निकल जाना है ; इसलिए आज जल्दी सो जाना है। फिर भी सोने से पहले कवितानुमा जो कुछ है अभी - अभी लिखा ; उसे सब सहृदय कविता प्रेमी साथियों को तनिक दें दिखा .....
चले दिल्ली : शेख चिल्ली
दो दिन के लिए दिल्ली
जा रहे हैं शेख चिल्ली
डर लागे , लागे डर
काँपे जिया थर - थर
झोले में सामान रखा
गिन कर , चुन कर
सहेजे हैं कागज पत्तर
मानो सोने की सिल्ली।
दो दिन के लिए दिल्ली
जा रहे हैं शेख चिल्ली ।
दिल्ली को लेकर बहुत
मन में है आशंका
खो न जाये तूती अपनी
सुनकर नगाड़ा - डंका
क्या पता टकरा जाए
कोई बिल्ला या बिल्ली।
दो दिन के लिए दिल्ली
जा रहे हैं शेख चिल्ली ।
बेतुका है वक्त यह तो
सीमित है लय व तुक
सिल्ली और बिल्ली में
खत्म सब , गया चुक
दूर है बहुत ही दिल्ली
फिर भी चल पड़े दिल्ली।
दो दिन के लिए दिल्ली
जा रहे हैं शेख चिल्ली॥
---
7 टिप्पणियां:
sundar kavita
बहुत बढ़िया ज़नाब!
आपकी यात्रा मंगलमय हो।
दफ्तरों में युगधर्म निभा कर आयेंगे शेखचिल्ली..
बढ़िया है और बढ़िया बनने से पहले आप ने पोस्ट कर दिया।:)
बहुत बढ़िया तुकबंदी ....
दूर है बहुत ही दिल्ली
फिर भी चल पड़े दिल्ली।
दो दिन के लिए दिल्ली
जा रहे हैं शेख चिल्ली॥
....बहुत बढ़िया.
पहले से ही बहुत से शेखचिल्ली भरे पड़े हैं दिल्ली में...
एक टिप्पणी भेजें