गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

आधा हम आधा न जाने कौन

* I wheeled with the stars,
   my heart broke loose on the wind....  - Pablo Neruda

* ह रात है
  सचमुच रात
  नीरव निस्तब्धता में
  स्वयं से मुलाकात....

* क्सर देर रात तक जगना हो जाता है लिखत - पढ़त के सिलसिले में।दिन भर की भाग - दौड़ के बाद लगता है कि  रात  अपने साथ  है। उसका होना महसूस होता है। इसे यदि यों कहा जाय कि रात महसूस होती है; दिखती कम है , तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।  बार - बार लगता है कि खुले आसमान और चाँद- सितारों के दृश्य - जीवंत सानिध्य - साहचर्य के बिना रात का होना रात के के अनुभूति ( भर) है शायद। कमरे में कृत्रिम प्रकाश , कृत्रिम सुख सुविधाओं के साजोसामान के बीच रात के निसर्ग को बस अनुभव ही किया जा सकता है उसके होने का चाक्षुष साक्षात्कार प्राय:  दुर्लभ ही होता है। कल रात सोने से पहले कुछ लिखा था कविता जैसा उसे ही अब इस वक्त सबके साथ साझा कर रहा हूँ ....

रात

यह रात है
कुछ विगत
कुछ आगत
यह रात है
साँझ की स्मृति
सुबह का सहज स्वागत

यह रात है
कुछ क्ल्मष
कुछ उजास
यह रात है
राग विराग मिलन वनवास

यह रात है
कुछ नहीं बस रात
यह रात है
खुद से खुद की कोई बात

यह रात है
आधी बात आधा मौन
यह रात है
आधा हम
आधा न जाने कौन !
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(चित्र : कैथरीन बील्स की  पेंटिंग)

6 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

रात मेरे लिये तो आने वाले कल की प्रतीक्षा है।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

रात का अनुभव कर लिया हो जैसै - ऐसी लगी यहकविता !

रविकर ने कहा…

आज शुक्रवार
चर्चा मंच पर
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति ||

charchamanch.blogspot.com

राजेश उत्‍साही ने कहा…

आखिरकार तो वह रात है।

Narendra Vyas ने कहा…

सच में ये रात है. सदा आधी ही रहती है फिर कहने की ज़रुरत नहीं की 'आधी रात' है. शेष से परे जो है उसके इस ओर का अशेष जो सदा प्रतीक्षित है, यही तो आशा है, ग़र कोई समझे तो...
मुक़म्मल रचना ! नमन !!

धीरेश ने कहा…

यह रात है
कुछ नहीं बस रात
यह रात है
खुद से खुद की कोई बात


कविता का आंतरिक प्रवाह बड़ा उस्तादाना है, पढ़ने में मजा आ गया।