'बीतता कुछ भी नहीं है' ...यह निर्मल वर्मा कहते हैं और यह भी कि 'समय वहाँ - वहाँ है , जहाँ - जहाँ हम बीते हैं।' फिर भी 'अपनी दुनिया' की प्रचलित शब्दावली में कहूँ तो बीते दिनों की 'दूसरी दुनिया' को याद करते हुए आज कुछ कवितायें प्रस्तुत हैं :
०१- स्मृति
वह शहर
जहाँ एक झील थी
सतत रंग बदलती हुई।
यह शहर
जहाँ एक झील है श्वेत श्याम
स्मृतियों में जज्ब।
०२- अलबम
तस्वीरों में दिखतें है
चेहरे तमाम
याद आते हैं कुछ के नाम।
कुछ बेनाम
और कुछ ऐसे भी
जिनके लिए खोज न सका
अब तक कोई नाम।
०३- डायरी
कुछ शब्द
कुछ रेखायें
और ढेर सारा हाशिया।
बीते दिनों का
अनबीता बयान
एक संग्रहालय
स्वयं का स्वयं के लिए।
०४- टाइपराइटर
उदित होता था
एक जादू
जाना - पहचाना।
उंगलियाँ रखतीं थीं
कुंजीपटल पर अपने निशान
और कागज पर
उभरता जाता था अंत:साक्ष्य।
०५- चिठ्ठी
एक समय की बात
सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति
हुआ करता था डाकिया
और उसका थैला
मानो जादुई चिराग।
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4 टिप्पणियां:
वाह जनाब!
बहुत बढ़िया!
क्षणिकाओं में परिभाषाएँ अच्छी रहीं!
संक्षिप्त लेकिन अर्थपूर्ण.
वे घटनायें अपने अपने समय के साथ सबके व्यक्तित्व में चिपकी हैं।
बेहतरीन कविताएँ।
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