आज ज्येष्ठ पूर्णिमा है। आज की शाम पूरब के आसमान में पूरा - पूरा गोल - गोल चाँद दिखाई दे रहा है। आज की ही रात काफी लंबा चंद्रग्रहण होगा। आज कैलेन्डर बता रहा है कि कबीर जयन्ती है। कबीर की कविता और उनके किस्से बचपन से सुनता आ रहा हूँ। आज ही नागार्जुन की जन्मशती है। नागार्जुन हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार यानि बाबा नागार्जुन ; जिनकी जन्मशती हिन्दी पट्टी में खूब जोर - शोर से मनाई जा रही है। आज शाम को अपने निवास पर एक गोष्ठी करने का मन था किन्तु कुछ अपरिहार्य व्यस्तताओं और तबीयत थोड़ी ढीली होने के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा है। नागार्जुन - जन्मशती के आयोजनों के क्रम में ५ और ६ जून २०११ को रामगढ़ ,नैनीताल स्थित महादेवी वर्मा सृजन पीठ में आयोजित 'नागार्जुन और समकालीन हिन्दी लेखन' शीर्षक कार्यक्रम में भाग लेकर लौटा हूँ। इस आयोजन में बहुत सारे लोगों ने व्याख्यान दिया , बाबा के संस्मरण सुनाए और उनकी कविताओं का पाठ किया। सृजन पीठ के निदेशक प्रो० बटरोही के निर्देशन में संपन्न यह एक सादा और गरिमापूर्ण कार्यक्रम रहा। उद्घाटन सत्र के अतिरिक्त यह आयोजन तीन सत्रों 'नागार्जुन एवं समकालीन हिन्दी लेखन' , 'नागार्जुन की याद' और 'उत्तराखंड के रचनाकारों का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य' में बँटा था। सभी सत्र बढ़िया तरीके से संचालित व संपन्न हुए किन्तु आज मैं दूसरे सत्र 'नागार्जुन की याद' का उल्लेख खास तौर पर करना चाहता हूँ। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो० वाचस्पति ने की उन्होंने बाबा की 'पंचायती डायरी' की चुनिन्दा प्रविष्टियों को पहली बार हिन्दी की लिखने - पढ़ने वाली बिरादरी के सामने प्रस्तुत किया। 'पंचायती डायरी' का किस्सा यह है कि किसी समय बाबा को एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने एक नई नकोर एक्ज्क्यूटिव डायरी भेंट की थी जो उन्होंने वाचस्पति जी को सौंप दी । जब वे जहरीखाल, काशीपुर और खटीमा में वाचस्पति जी के साथ रहने के लिए आते थे तो इसमें कुछ - कुछ लिखा करते थे और वहाँ आने - जाने - ठहरने वाले सभी लोगों को छूट थी कि वे इस डायरी में लिख सकते थे। धीरे- धीरे यह एक पंचायती डायरी बन गई जो अभी वाचस्पति जी के पास सुरक्षित है। रामगढ़ में जब इसका खुलासा हुआ तो यह हम सबके लिए एक 'एक्स्क्लूसिव' खबर थी और आज जब देश - दुनिया में नागार्जुन जन्मशती की धूम है तो निश्चित रूप से इसका प्रकाशन होना जल्द होना चहिए। रामगढ़ में मैंने अपने मोबाइल कैमरे से इस डायरी के एक पृष्ठ की फोटो खींच ली थी जिस पर बाबा ने एक कविता लिखी है। आज नागार्जुन जन्मशती के मौके पर 'जनता के कवि' के प्रति नमन सहित इस अप्रकाशित कविता को 'कर्मनाशा' के पाठकों और प्रेमियों के लिए यथावत प्रस्तुत कर रहा हूँ :
देर तक झुका रहा
अपनी परछाईं देखता रहा देर तक
उसके अन्दर
झु
का
र
हा
देर तक...
अगले ही क्षण
नदी गायब थी
वो झरना
हो
ग
ई
थी !
7 टिप्पणियां:
स्वरपूर्ण कविता, रुक रुक कर बोलने से भाव और उभरता है।
कीमती प्रस्तुति.
बाबा नागार्जुन की 101वीं जयन्ती पर उन्हें शत्-शत् नमन करता हूँ!
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मैं उन सौभाग्यशाली व्यक्तियों में से एक हूँ जिसे बाबा का सान्निध्य मिला!
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बाबा पर आपकी आज की पोस्ट बहुत महत्वपूर्ण है!
आपकी यह उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी है!
अच्छी प्रस्तुति ... बाबा नागार्जुन को नमन
humare liye bhi exclusive khabar hai ye..
इस बेशकीमत विरासत को सम्हालने के लिए प्रोफ. वाचस्पति जी और इस थाती को हम सब तक पहुँचाने के लिए श्री श्द्धेश्वर जी का आभार ! पढ़कर ऐसा लगा जैसे गंगाजल की एक बूँद से पुनर्जीवन मिल गया...
बाबा की जयन्ती पर उन्हें शत्-शत् नमन !!
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