I become ugly when I don't love
And I become ugly when I don't write.
Love me and say it out loud
I refuse that you love me mutely.
निजार कब्बानी की किताबों की एक लंबी सूची है. दुनिया की कई भाषाओं में उनके रचनाकर्म का अनुवाद हुआ है. उम्होंने अपनी पहली कविता तब लिखी जब वे सोलह साल के थे और इक्कीस बरस उम्र में उनका पहला कविता संग्रह प्रकाशित हुआ था। जिसने युवा वर्ग में खलबली मचा दी थी। दमिश्क की सड़कों पर विद्यार्थी उनकी कविताओं का सामूहिक पाठ करते देखे जाते थे। यह द्वितीय विश्वयुद्ध का समय था और दुनिया के साथ अरब जगत का के साहित्य का सार्वजनिक संसार एक नई शक्ल ले रहा था। ऐसे में निज़ार क़ब्बानी की कविताओं नें प्रेम और दैहिकता को मानवीय यथार्थ के दैनन्दिन व्यवहार के साथ जोड़ने की बात जो एक नई खिड़की के खुलने जैसा था और यही उनकी लोकप्रियता का कारण बना। यह एक तरह से परम्परा से मुक्ति थी और अपनी दुनिया को अपनी ही आँखों से देखने हिमायत। यहा प्रेम एक 'टैबू' नहीं था और न ही कोई गैरदुनियावी चीज। वे लिखते हैं 'मेरे परिवार में प्रेम उतनी ही स्वाभाविकता के साथ आता है जितनी स्वाभाविकता के साथ कि सेब में मिठास आती है।'
दो प्रेम कवितायें : निज़ार क़ब्बानी
( अनुवाद: सिद्धेश्वर सिंह )
०१ - विपर्यय
जब से पड़ा हूँ मैं प्रेम में
बदल - सा गया है
ऊपर वाले का साम्राज्य।
संध्या शयन करती है
मेरे कोट के भीतर
और पश्चिम दिशा से उदित होता है सूर्य।
०२ -अनुनय
दूर रहो
मेरे दृष्टिपथ से
ताकि मैं रंगों में कर सकूँ अन्तर।
दूर हो जाओ
मेरे हाथों की सीमा से
ताकि मैं जान सकूँ
इस ब्रह्मांड का वास्तविक रूपाकार
और खोज कर सकूँ
कि अपनी पृथ्वी है सचमुच गोलाकार।
3 टिप्पणियां:
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी आज के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
अहा, बड़ा नयापन दिखता है इन कविताओं में।
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