वेरा पावलोवा ( जन्म : १९६३ ) की कुछ कवितायें आप कुछ समय पहले 'कर्मनाशा' , 'कबाड़ख़ाना' व 'प्रतिभा की दुनिया' पन्नों पर पढ़ चुके हैं । उनकी कविताओं के मेरे द्वारा किए गए कुछ अनुवाद पत्र - पत्रिकाओं में भी आ रहे हैं । रूसी कविता की इस सशक्त हस्ताक्षर ने छोटी - छोटी बातों और नितान्त मामूली समझे जाने वाले जीवन प्रसंगों को बहुत ही लघु काव्य - कलेवर में उठाने - सहेजने व संप्रेषित करने की जो महारत हासिल की है वह आकर्षित करती है। वेरा का एक संक्षिप्त परिचय यहाँ है। आइए , आज बार फिर पढ़ते - देखते हैं उनकी दो ( और )कवितायें :
वेरा पावलोवा की दो कवितायें
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह )
०१- प्रेम - पथ
नींद में पड़ गई मैं प्यार में
और जागी आँसुओं से आर्द्र
इतना प्यार नहीं किया किसी को
न ही किसी और ने ही दिया इतना प्यार।
मेरी नींद में
इतना अवकाश नहीं था
कि चूम सकूँ उसे
पूछ सकूँ उसका नाम।
अब बीत रही हैं
अनिद्रा से पूरित अनेक रातें
जब मैं देखे जा रही हूँ उसके स्वप्न।
०२- अकेलापन
रतिजनित व्याधि की तरह है
यह अकेलापन
तुम रहो तुम
मैं रहूँ मैं
आओ साझा करें
कुछ विश्रांत क्षणों को
इधर - उधर की बतकही में
बिता डालें वक्त
और छोड़ दें
बहुत सारी चीजें अनकही।
आओ परिरंभन में निबद्ध हो जायें
और करे अनुभूति
कि कोई निदान नहीं है अकेलेपन का।
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7 टिप्पणियां:
कि कोई निदान नहीं है अकेलेपन का।
अकेलापन असहनीय होता है।
बेरा पाब्लोआ की सुन्दर रचनाओं का बहुत ही सशक्त अनुवाद किया है आपने!
कभी कभी अकेलापन असहनीय होता है।
दोनों ही कविताएँ बेहद प्रभावशाली. खासकर 'प्रेम पथ' ने बेहद ही प्रभावित किया. इस पुनीत कृत्या के प्रयोजनार्थ सम्मानीय सिद्धेश्वर जी को नमन करता हूँ. आभार !
स्वप्न वाली बात अद्भुत ! सत्य ! दिल को भेदती हुयी !
अकेलापन तो बुरा ही होता होगा .Loneliness kills . थोड़ी सी awareness ले जा सकती है solitude की तरफ. And I strongly believe that solitude is the best society .
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