बाहर होना
भर देता है भीतर की रिक्तियाँ..
भर देता है भीतर की रिक्तियाँ..
'कविता समय' से लौटते हुए ग्वालियर के बस अड्डे पर जब घर वापसी के लिए अपनी बस में सवार हुआ तो खिड़की से इस बस पर नजर पड़ी। मन मुदित हो गया। ओह ! तो इस नाचीज के नाम पर भी कोई चीज है जो चलती है! बस फोटो खीच ली उस बस की। लगा कि यात्रा सुखद होगी । वैसे भी घर वापसी की यात्रा सुखद ही होती है - हमेशा।
अनंत आकाश के नीचे
एक छत है
जिससे दीख जाता है
अपने हिस्से का अनंत।
इस विपुला पृथिवी पर
एक बिन्दु के हजारवें भाग
या उससे कम जगह को घेरता हुआ
एक बिन्दु है
जहाँ विश्राम पाती हैं सारी यात्रायें।
यात्राओं में
अपने आप
पीछे छूटती जाती हैं जगहें
दूरियों को काटते -पाटते हुए।
दूरियाँ बतलाती हैं
निकटताओं के विविधवर्णी अर्थ
और खुलती जाती हैं
घर जैसे
एक छोटे - से शब्द की
7 टिप्पणियां:
वाह ....वाह.....बहुत खूब
हमारी सोच का कोई अन्त नही..............
अनंत तो हर दिशा से ही अनंत दिखता है।
शीर्षक पढ़ते ही मुझे ये दो गीत याद आ गए -
१. दुपट्टे की गिरहा में बाँध लीजिए,
मेरा दिल है कभी काम आयगा!
२. दिल की गिरह खोल दो,
चुप न बैठो, कोई गीत गाओ ... ... .
शेष बाद में!
सकारात्मक , अच्छी प्रस्तुति। हर शब्दल में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
आपके विचारों का मेरे ब्लॉग्स पर सदा स्वागत है।
bahot sundar.
यात्राओं में
अपने आप
पीछे छूटती जाती हैं जगहें
दूरियों को काटते -पाटते हुए।
दूरियाँ बतलाती हैं
निकटताओं के विविधवर्णी अर्थ....
बहुत ही सुंदर कविता...और बहुत ही गहरे भाव!
बहुत-बहुत बधाई !
वाह…लौटना कितना रूमानी होता है और साथ ही कितना यथार्थ!
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