तमाम फेसबुकिया मित्रों से क्षमा सहित और इसी दुनिया के यायावरों के लिए आदर और प्यार के साथ एक (और)अतुकान्त तुक.. अपनी एक और कविता..
फेसबुक -२
रात हुई है
मुख - पोथी पर चहल पहल है।
उलझा - उलझा सा है कुछ - कुछ
और बहुत कुछ सहज सरल है।
जीवन है यह
इसमे बहुत मरुस्थल-ऊसर
और कहीं हरियाई लह- लह पुष्ट फसल है।
आओ थोड़ा ठीक करें चश्मे का नंबर
साफ करें धुँधलाती छवियाँ
औ' पहचानें
कहाँ अमिय है - कहाँ गरल है।
दुनिया है यह रंग बिरंगी
अच्छी भी और कुछ बेढंगी
हमको ही गढ़ना है
हमको कुढ़ना है
हमसे ही पसरेगा इसमें सन्नाटा
हमसे ही है
इसमें भरना रंग नवल है।
रात हुई है
मुख - पोथी पर चहल पहल है।
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(* फेसबुक -१ इसी ठिकाने पर यहाँ )
9 टिप्पणियां:
प्रवाहमयी धारा, चहल पहल भरी।
रात हुई है
मुख - पोथी पर चहल पहल है।
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अतुकन्त तुक का जवाब नहीं!
बहुत बढ़िया!
साफ करें धुँधलाती छवियाँ
औ' पहचानें
कहाँ अमिय है - कहाँ गरल है।
badhiya baat :)
यानी कही दुनिया का ट्रेफिक किसी भी वक़्त नहीं रुकता.....हमेशा चहल पहल....सिग्नल कभी आराम नहीं करते
माशाअल्लाह...क्या कहने [ नेह का गेह प्रबल है दद्दा :-)] - - अच्छा किया पहली वाली का लिंक भी दे दिया- छूट गई रही :-)
मुख - पोथी !!
haha..hihi..hoho..haha
बहुत खूब!
मुख पोथी...बढ़िया
शिफ्ट ड्यूटी के तहत
सब समय सरगर्मियां
सर्दियों में भी बनी रहती हैं।
ऐसी अजब गजब है
फेसबुक
जिसे नाम दिया है
मित्र सिद्धेश्वर सिंह ने
मुख पोथी
कहा जाता है इसे
चेहरा पुस्तिका भी
अब पुस्तिका है
या है पुस्तक
समझ आए तो
बतलाना मुझ तक।
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