गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

एक कवि की कुटुंब कथा

इस ठिकाने पर आप अक्सर हिन्दीतर कविता विशेषकर विश्व कविता  से मेरे निजी  व अनियमित चयन के साझीदार होते रहे हैं। हिन्दी कविता पढ़ते - पढ़ते , लिखते - देखते मन होता है कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में लिखे गए / लिखे जा रहे  काव्य को कविता प्रेमियों और अध्येताओं के साथ शेयर किया किया जाय। आज इसी क्रम में प्रस्तुत है स्त्री स्वर की एक  सशक्त  प्रस्तुतकर्ता पुलित्ज़र पुरस्कार से सम्मानित अमरीकी कवि कैरोलिन कीज़र की  यह कविता। कैरोलिन  उन कवियों में से हैं जिन्होंने  प्रत्यक्षत: / परोक्षत: अपने समकालीनों पर बड़ी चुटीली कवितायें भी लिखी हैं....


कैरोलिन कीज़र की कविता


एक कवि की कुटुंब कथा 
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह )


मोटी जर्सी में कसी
पुष्ट देहदारी कवि की देह
एक अधेड चोर की तरह
ले रही है पंजों के  बल आश्चर्यजनक उछाल
अरे!  कहीं नन्हे पाखी रोबिन को लग तो नहीं गई चोट?


हंसों को दाने चुगाने  के वास्ते  झुकती है वह
घुघराली केशराशि के नीचे
प्रकट हो उठता है उसकी ग्रीवा का  उजला वक्र
उसके पति को लगता है मानो कुछ दिखा ही नहीं
जबकि उसकी कविताओं  में
वही स्त्री  कर रही  है झिलमिल - झिलमिल।


पूरे घर में व्याप्त है
नीरवता का  समृद्ध साम्राज्य
गुलदान में शोभायमान एक अकेले फर्न की हिलडुल
इसे किंचित भंग कर रही है अलबत्ता।
पोर्च में पसरा प्रचंड कवि
अपने आप से कर रहा है सतत वार्तालाप।


4 टिप्‍पणियां:

विजय गौड़ ने कहा…

हंसों को दाने चुगाने के वास्ते झुकती है वह
घुघराली केशराशि के नीचे
प्रकट हो उठता है उसकी ग्रीवा का उजला वक्र
उसके पति को लगता है मानो कुछ दिखा ही नहीं
जबकि उसकी कविताओं में
वही स्त्री कर रही है झिलमिल - झिलमिल।
sundar chitr hai.

डॉ .अनुराग ने कहा…

मोटी जर्सी में कसी
पुष्ट देहदारी कवि की देह
एक अधेड चोर की तरह
ले रही है पंजों के बल आश्चर्यजनक उछाल

wow......

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कवियों की कहानी।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

पोर्च में पसरा प्रचंड कवि
अपने आप से कर रहा है सतत वार्तालाप।
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बहुत सुन्दर अनुवाद!
आपका कार्य श्रमसाध्य, महत्वपूर्ण और काबिलेतारीफ है!