The night is good fertile ground
for a sower of verses.
- Jorge Luis Borges
अभी रात है। आधी बीत चुकी ;आधी बीतने को बाकी ...तैयार। अभी बस कुछ ही घंटे पहले तक शाम थी और अब से बस कुछ ही घंटे बाद भोर होगी .. फिर सुबह , प्रात:काल। आजकल सुबह - सुबह कोहरा हो जाता है। सूरज उगने के बाद भी अपने ताप से गरमाता नहीं। रोशनी भी कुछ कम होती है। ऐसा लगता है कि दिन का कुछ हिस्सा भी गोया रात का ही विस्तार है। फिर भी दुनिया रोज बनती है , चलती है अपनी ही रोजमर्रा की चाल। कामधाम हस्बमामूल चलता है। शाम जल्दी घिर आती है और एक मौका देती है कि दिन भर की टूट-फूट की मरम्मत की जाय...बतियाया जाय खुद से.. ओह ! फिर से याद आ रही है Borges की...I must enclose the tears of evening
in the hard diamond of the poem.
.....बहरहाल ,अभी रात अभी बाकी है, सुबह उठना है , समय से काम पर जाना है... और अभी , इस वक्त ...सोने से पहले सात छोटी - छॊटी कवितायें..शीर्षकहीन ..आइए देखें..पढ़े ..
रात में बात : सात कवितायें
१-
इच्छाओं के समुद्र में
उभ -चुभ
दिन और रात.
कहाँ है फुरसत
कब करें
खुद से मुलाकात ?
२-
रात है
रात में है कोई बात।
दिन भर खोया रहा
जग में।
इस वक्त
अपने संग
अपना ही साथ।
३-
धूप हुई
उड़ गया
भाप बन पानी।
खुली हथेलियों में
बंद है
शायद कोई कहानी।
४-
दिन चढ़ेगा
बढ़ेगा कुछ ताप।
निकलना होगा
घर से चुपचाप।
भाषाओं के जंगल में
अनसुना रह जाएगा
एकालाप।
५-
शाम होगी
लौटना होगा बसेरे की ओर।
याद -सा करूँगा तुम्हें
और
अपनी ओर खींच - सी लेगी
कोई अदृश्य डोर।
६-
यह कोई छाँव है
अदेखे पेड़ की
या कोई डेरा
कोई पड़ाव !
यह कोई घर है
या किसी नदी का तट
जहाँ रोज लौट आती है
हिचकोले खाती एक नाव !
७-
बहुत चमकीला है
आज का चाँद
खिड़कियों से छनकर
आ रही है उजास।
रात बीतेगी
अपने ही भँवर में डूबकर
बना है
बना रहे यह अहसास।
8 टिप्पणियां:
रात और दिन की कशमकश का सतरंगी चित्रण।
बहुत उम्दा कवितायें भाई…छूती हुईं…
ओह हर एक कविता बेहतरीन है सर :)
... bahut sundar ... prabhaavashaalee rachanaayen ... badhaai !!!
यह शीर्षकहीन रचनाएँ तो बहुत सशक्त रहीं!
भाषाओं के जंगल में
अनसुना रह जाएगा
एकालाप।
वाह!
सभी कवितायेँ बहुत सुन्दर और सार्थक!
रात पर बहुत अचछि कशनिकयेन खुद से कशमकश बताति हुई
sabki sab bahut achchi lagin.
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