अंचल सिद्धार्थ तीसरी कक्षा में पढ़ते हैं। उन्हें अपने स्कूल की किताबों के अलावा पत्र - पत्रिकायें पढ़ने में भी रुचि है। अब तो कुछ लिखने की कोशिश भी कर रहे हैं. प्रस्तुत है उनकी एक कहानी ...
चुडै़लिनी का अन्त
एक दिन एक लड़का अपनी दादी को बुलाता है । उसके घर के पास एक जंगल होता है और वहाँ पर एक चुड़ैलिनी रहती थी। लड़के का घर जंगल के बीच में ही था। तो चुड़ै़लिनी उसकी सारी बातें सुनती रहती थी और जब उसने दादी को बुलाने वाली बात सुनी तो उसके दिमाग में एक तरकीब आई कि मैं उसकी दादी बनकर उसके घर चली जाती हूँ और एक बोरा भी ले जाती हूँ, वो भी खिलौनों से भरा। तो वो चुड़ैलिनी उसके घर जाने के बाद उस लड़के का कमरा पूछती है और सारे खिलौने निकाल देती है लेकिन बोरे में एक खिलौना बच जाता है और वो लड़के के पीछे से आकर बोरा फेंक देती है। उसको ले जाने में उसको समय लगता है क्योंकि वह बहुत भारी होता है। तब लड़के को उसमें एक छेद दिखता है। बस उस छेद में से उसका हाथ ही निकल पाता है। वो अपने हाथ से एक नुकीला पत्थर निकालता है और बोरी को फाड़ देता है और निकल जाता है। बोरे में पत्थर भरकर चुड़लिनी के पीछे - पीछे चलने लगता है और उसके ऊपर एक बड़ा पत्थर डालकर उसको मार देता है।
* अंचल सिद्धार्थ
कक्षा - III बी
9 टिप्पणियां:
अच्छा प्रयास है..बालक को लेखन जारी रखना चाहिये. कल्पनाशीलता अच्छी लगी..तारतम्यता आ जायेगी लिखते लिखते. शुभकामनाएँ.
पूत के पाव पालने में दिख रहे हैं...अच्छा आगाज़.....!
ऐसे ही एक दिन ये बड़ी -बड़ी कहानियाँ कहने लग जायेंगे .....अंचल jii ..को शुभकामनाएँ.
होनहार बिरवान के होत चीकने पात.
बहुत बढ़िया लघु कथा लिखी है।
आशीर्वाद!
शुभकामना बेटा
बस चुडैलिनी नहीं चुडैल
भाषा का ख़्याल अभी से रखो… बाद में आद्त बन जाती है।
अंचल को ढेरों शुभकामनाएं। वाक्य विन्यास तो बहुत ही सधा हुआ है।
प्रिय श्री अंचल जी,
आपने रचना में यह नहीं बताया कि चुड़ैलिनी जी बच्चे को बोरे में भरकर क्यों ले जाना चाहती थीं। वह क्या करती उस बच्चे का। अगर इसका वर्णन होता तो कहानी पाठकों को भयग्रस्त कर ज्यादा तीव्रता से अपनी ओर आकर्षित कर लेती।
दूसरा आपने चुड़ैलिनी जी को मारने का प्लान पहले बनाया फिर कहानी लिखी इसीलिए बोरे में एक पत्थर छोड़ा फिर छेद की प्लानिंग की गई।
जब तक पढ़ने वालों को चुड़ैलिनी से डराएंगे नहीं वह आपकी ही तरह उसे पत्थर से मारने की कामना क्यों करेगा। लिहाजा रचना में वर्णन के जरिए और भय लाना चाहिए था।
खैर प्रयास अच्छा है। बधाऊ।
अगलू रचना की प्रतीक्षा में।
आपका ही
नामवर सिंह
पुनश्चः अगली रचना के साथ अपना चित्र भी दें। साहित्य में इसे कूल एवं ट्रेन्डी माना जाता है आजकल।
नासि
सिद्धार्थ जी को बहुत-बहुत बधाई!
आगे चलकर ब्लॉगिंग में बहुत नाम कमाओगे!
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