गुरुवार, 28 अगस्त 2008

इस कविता की याद आती रही और मैं उदास होता रहा


पुराने बक्से से खूब पुरानी चीजें निकल रही हैं।पुरानी पीले पड़ गए कागज-पत्तरों के बीच ऐसी-ऐसी अद्भुत चीजें निकल रही हैं कि लगता है कि जैसे कोई जादुई बकुचा हाथ लग है और एक कुशल मदारी की तरह मजमा लगाने का पूरा माल-असबाब इकठ्ठा हो गया है. आज से लगभग अठारह बरस पहले का एक कागज नमूदार हुआ है जिस पर 'बालिका वर्ष' शीर्षक से अपने हस्तलेख में एक कविता है. इस कविता बाबत मैं यह मान चुका था कि इसकी कोई भी प्रति (हस्तलिखित अथवा मुद्रित) मेरे पास नहीं है- न डायरी में न फ़ाइल में.लेकिन यह तो प्रकट हो गई. दरअसल यह कविता १९९० में 'दक्षेस' द्वारा घोषित और मनाए जा रहे बालिका वर्ष को लेकर लिखी गई थी और उस समय के लोकप्रिय साप्ताहिक अखबार 'संडे आब्जर्वर' में प्रकाशित हुई थी. बीच -बीच में इस कविता की याद आती रही और मैं उदास होता रहा. अब जबकि खुद एक बेटी का पिता हूं तब कविता की 'बिट्टो' का दु:ख और परे्शान करता है. आज इस कविता को 'कर्मनाशा' पर प्रस्तुत करने का उद्देश्य बस इतना भर है कि दुनिया भर की तमाम बेटियां अपने जन्म से पहले ही काल के गाल में न समायें, स्वस्थ रहें, खुश रहें, हंसती-खेलती रहें,मासूम गौरैयों की तरह हमारे घर आंगनों में फ़ुदकती रहें और उन्हें देखकर हमारी आंखें जुड़ाती रहें.

बालिका वर्ष

खुश हो जा मेरी मेरी बिट्टो !
यह तेरा वर्ष है.
दक्षेस ने तेरे नाम कर दिया है यह वर्ष
पता है तुझे दक्षेस?
समझ ले कि दुनिया के सात देश
इस वर्ष तेरी ही चिन्ता में डूबे हुए हैं.
उन्हें हर हाल में साल रहा है तेरा दु:ख
वे हर तरफ़ से खोज रहे हैं
तेरे लिए खुशी-तेरे लिए सुख.
सात भाइयों की तरह
तुझे चंवर डुला रहे हैं दुनिया के सात देश !

देश किसे कहते हैं
यह मत जान-मत सोच
छोटे-से बाल मस्तिष्क पर
मत डाल इतना गुरुतर बोझ
इस वर्ष तू मुस्कान बिखेरती रह
कैमरे की आंख तेरी तरफ़ है
तेरी ओर टकटकी बांधे देख रहा है
समूचा प्रचारतंत्र , प्रजातंत्र और राजतंत्र.
इस वर्ष तू भूख की बात मत कर
मत रो कि तेरे कपड़े तार-तार हो गए हैं
गुमसुम मत बैठ कि तेरे पास कोई खिलौना नहीं है
तेरे पास एक वर्ष है बिट्टो ! हर्ष कर !

पूरे तीन सौ पैंसठ दिन
तेरे नाम कर दिए गए हैं
हमारे प्रति कृतज्ञ रह और काम कर.
अपने चेहरे की तरह चमका दे घर के सारे बासन
कोयले से मत लिख क ख ग
फ़र्श पर मत फ़ैला गंदगी.
चूल्हे पर अदहन तैयार है
पूरे कुनबे के लिए भात रांध और माड़ पी
यह तेरा वर्ष है -तुझे तंदुरुस्त दीखना है
बचना है हारी-बीमारी से !

राजधानियों में
दीवारों पर चस्पां हैं तेरे पोस्टर
मेजों पर बिखरी पड़ी हैं
तेरी रंगीन पुस्तिकायें
टेलीविजन के पर्दे पर तू उछल-कूद रही है
देख तो इस वर्ष तुझे कितने फ़ुरसत हो गई है.
नन्हें खरगोशों की तरह
तू एक साथ सात देशों की जमीन पर खेल रही है.

वर्ष बीतने पर
क्या तू सचमुच मांद में दुबक जाएगी मेरी बिट्टो !
या एक वर्ष तक हर्ष मनाकर
बिल्कुल थक जाएगी मेरी बिट्टो !
वर्षान्त करीब है
यह तेरा वर्ष है बिट्टो ! तू खुश रह !

3 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

गजब!!

पुराना बक्सा पूरा खंगालो जी!!! हम सब कुछ पढ़ना चाहते हैं अब यह देख कर!!

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

vah achchi rachana dhanyawad.

बेनामी ने कहा…

'वाह' के अलावा क्या कहूँ समझ नहीं आ रहा. शुक्रिया.