वीरेन डंगवाल हमारे समय के सबसे अधिक और सचमुच पढे जाने वाले कवियों में हैं। सरल,साधारण और महत्वहीन समझे जाने वाले विषयों,वस्तुओं और व्यक्तियों पर उन्होंने अद्भुत और असाधारण कवितायें लिखी हैं।देखते हैं साहित्य अकादेमी पुरस्कार का CITATION उनके बारे में क्या कहता है-
Viren Dangwal
(Born 1947)
Sahitya Academy Award - 2004 - Hindi
CITATION
Viren Dangwal was born in 1947, in Kirtinagar, Tehri Garhwal (now in Uttaranchal)। He has the degrees of MA and D.Phil in Hindi and knows English also. Having begun writing in 1968-69, his poems and short stories have been published in major literary magazines. Some of his important works are Isi Duniya Mein, Dushchakra Mein' Srashta (both collections of poems) and Nazim Hikmat Ki Kavitayen (translation). Recipient of Raghuvir Sahay Samman, Shrikant Verma Puraskar and Shamsher Samman.
In Dushchakra Mein Srashta, a collection of 114 poems probing into the mystery of the complex and difficult realm of creation, the poet deals with the horrible, dislocated and disjointed times we are passing through। Touching on local concerns, the poet reaches to global dimensions, paying equal attention to the ills found at all levels। The poet delineates the anti-human conspiracy inherent in even a small action, and confronts it। Even while making the subtlest use of images, he makes successful use of the language of the common people। This work undoubtedly adds to the greatness of Indian poetry in Hindi.
वीरेन डंगवाल की कविता 'सूअर का बच्चा'
बारिश जमकर हुई, धुल गया सूअर का बच्चा
धुल-पुंछकर अंगरेज बन गया सूअर का बच्चा.
चित्रलिखी हकबकी गाय झेलती रही बौछारें
फिर भी कूल्हों पर गोबर की झाईं छपी हुई है
कुत्ता तो घुस गया अधबने उस मकान के भीतर
जिसमें पड़ना फर्श, पलस्तर होना सब बाकी है.
चीनी मिल के आगे डीजल मिले हुए कीचड़ में
रपट गया है लिये-दिये इक्का गर्दन पर घोड़ा
लिथड़ा पड़ा चलाता टांगें आंखों में भर ऑंसू
दौड़े लोग मदद को, मिस्त्री--रिक्शे-तॉंगे वाले.
राजमार्ग है यह, ट्राफिक चलता चौबीसों घंटे
थोड़ी-सी भी बाधा से बेहद बवाल होता है.
लगभग बंद हुआ पानी पर टपक रहे हैं खोखे
परेशान हैं खासतौर पर चाय-पकौड़ी वाले,
या बीड़ी माचिस वाले.
पोलीथिन से ढांप कटोरी लौट रही घर रज्जो
अम्मा के आने से पहले चूल्हा तो धौंका ले
रखे छौंक तरकारी.
पहले-पहल दृश्य दीखते हैं इतने अलबेले
ऑंखों ने पहले-पहले अपनी उजास देखी है
ठंडक पहुंची सीझ हृदय में अद्भुत मोद भरा है
इससे इतनी अकड़ भरा है सूअर का बच्चा।
3 टिप्पणियां:
...पोलीथिन से ढांप कटोरी लौट रही घर रज्जो
अम्मा के आने से पहले चूल्हा तो धौंका ले
रखे छौंक तरकारी...
सारि कविता एक तरफ़, ये तीन पंक्तियां जाने क्यों मुझे लगातार हॉन्ट करती रही हैं. बढ़िया काम किया मास्साब!
इस में आप कविता का उपशीर्षक लिखना भूल गए कि यह कविता नज़ीर अकबराबादी साहब को समर्पित है.
वैसे जो रेस्पॉन्स हमारे ब्लॉगरों ने इस कविता को दिया है उसे देख कर मीर बाबा का शेर याद आता है:
क़द्र जैसी मेरी शेरों की अमीरों में हुई
वैसी ही उनकी होगी मेरे दीवान के बीच
शानदार कविता. जमाए रहो बाऊजी!
शानदार । बाबा नागार्जुन की चूल्हा रोया की याद आ गई। शुक्रिया हुज़ूर ....
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