सोमवार, 28 जुलाई 2014

धूप के वृत्त में उभरते मधुमक्खियों छत्ते की मानिन्द

धुनिक पोलिश कविता  की एक सशक्त हस्ताक्षर हालीना पोस्वियातोव्सका (१९३५ - १९६७) की कई कविताओं के अनुवाद आप इस ठिकाने पर और  कई जगह पत्र - पत्रिकाओं में पढ़ चुके हैं।वह  इधर के एकाध दशकों से  पोलिश साहित्य के अध्येताओं  की निगाह की निगाह में आई है और विश्व की बहुत - सी भाषाओं में उनके अनुवाद हुए हैं। हालीना ने बहुत ही लघु जीवन जिया और उनकी जीवन कथा एक तरह से 'दु:ख ही जीवन की कथा रही। उनकी कविताओं में प्रेम की विविधवर्णी छवियाँ हैं और साधारण - सी लगने वाली बात को   विशिष्ट और विलक्षण तरीके कहने का एक जुदा अंदाज। आइए , आज पढ़ते - देखते हैं यह कविता : 


हालीना पोस्वियातोव्सका  की कविता
शब्दों का होना
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह)

इन तमाम शब्दों का अस्तित्व था
हमेशा से
वे थे सूरजमुखी की खुली मुस्कान में
वे थे
कौवे के काले पंखों में
और वे थे
अधखुले दरवाजे के चौखट पर भी सतत विद्यमान।
 
यहाँ तक कि जब नहीं था कोई भी दरवाजा
तब भी उनका अस्तित्व था
एक मामूली -से  पेड़ की अनगिन शाखाओं में।

और तुम चाहते हो कि वे मेरे हो जायें
तुम चाहते हो कि रूपायित हो जाऊँ मैं
कौवे की पाँख में, भोजपत्र के वृक्ष में और ग्रीष्म की सुहानी ऋतु में
तुम चाहते हो कि
मैं भिनभिनाऊँ
धूप के वृत्त में उभरते मधुमक्खियों छत्ते की मानिन्द।

अरे पागल !
मैं नहीं हूँ इन शब्दों की स्वामिनी
मैंने तो उन्हें बस उधार लिया है
हवा से , मधुमक्खियों से और सूरज से।
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( * हालीना पोस्वियातोव्सका की कुछ कविताओं के अनुवाद यहाँ और यहाँ भी....)

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