अध्ययन और अभिव्यक्ति की साझेदारी के इस ठिकाने पर आज एक बार फिर पढ़ते हैं पोलिश कवि अन्ना स्विर्सज़्यान्स्का ( १९०९ - १९८४ ) की एक और कविता ।अन्ना स्विर्सज़्यान्स्का जिसे 'अन्ना स्विर' जैसे छोटे नाम से भी जाना जाता है। दूसरे विश्वयुद्ध के समय वह पोलिश प्रतिरोध आन्दोलन से जुड़कर नर्स के रूप में उपचार सेवा कार्य में संलग्न रहीं तथा भूमिगत प्रकाशनों से भी सम्बद्ध रहीं। बाहरी दुनिया के असंख्य कविता प्रेमियों से अन्ना का परिचय करवाने में लियोनार्ड नाथन और चेस्लाव मिलेश की बड़ी भूमिका रही है। आइए , आज पढ़ते - देखते हैं यह छोटी - सी कविता :
अन्ना स्विर की कविता
कपड़े धोती हुई कवयित्री
(अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह)
बहुत हुई टाइपिंग
आज कपड़े धो रही हूँ मैं
पुराने तरीके से
-मैं धो रही हूँ
-पछीट रही हूँ
-निचोड़ रही हूँ

मेरी तमाम परदादियाँ - परनानियाँ
इत्मीनान से।
सेहत के लिए अच्छा है कपड़े धोना
और हो जाता है काम का काम भी।
लेकिन एक धुली हुई कमीज की तरह
हमेशा संशयपूर्ण होता है लिखना
मानो किसी सादे कागज पर
टाइप कर दिए गए हों
तीन प्रश्नवाचक चिह्न।
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(* अन्ना स्विर की दो कवितायें इसी ब्लॉग पर यहाँ देखी जा सकती हैं। ** चित्र : कार्लो कैनेवरी की पेंटिंग 'मांक्स हैंगिंग लांड्री' ; गूगल छवि से साभार।)
8 टिप्पणियां:
वाह ।
सच है, सहमत हूँ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
अनुवाद में तो आप सिद्धहस्त हैं, सिद्धेश्वर जी!
साझा करने के लिए आभार!
ek acchi rachna huamre saath share karne ke liye dhanyavaad!
-Abhijit (Reflections)
एक अच्छी कविता का अच्छा अनुवाद
सर्वोत्त्कृष्ट, अत्युत्तम रचना आभार
हिन्दी तकनीकी क्षेत्र कुछ नया और रोचक पढने और जानने की इच्छा है तो इसे एक बार अवश्य देखें,
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MY BIG GUIDE
bahut khoob!
बेहद सुन्दर
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