रीता पेत्रो आधुनिक अल्बानियाई कविता की एक प्रमुख हस्ताक्षर हैं। उनका जन्म राजधानी तिराना में 13 मार्च, 1962 को हुआ था। अस्सी के दशक में उन्होंने तिराना विश्वविद्यालय से अल्बानियाई भाषा और साहित्य प्रभाग में अध्ययन कर डिग्री हासिल की तथा 1993 में यूनानी दर्शन और संस्कृति में एथेंस विश्वविद्यालय में विशेषज्ञता प्राप्त की। वह लंबे समय तक स्कूल बुक पब्लिशिंग हाउस में साहित्य संपादन का काम कर चुकी हैं तथा भाषा और साहित्य से संबंधित प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भी उनकी सक्रिय भागीदारी रही है। उनके तीन कविता संग्रह ( 'डिफेम्ड वर्स' , 'द टेस्ट आफ इंस्टिंक्ट' और ' दे आर सिंगिंग लाइव डाउन हियर') प्रकाशित हुए हैं और विश्व की कई भाषाओं में कवितायें अनूदित हुई हैं। रीता पेत्रो की कवितायें कलेवर व काया के स्तर पर बड़ी न होकर विचार व संवेदना के सूक्ष्म स्तर पर बड़ी दिखाई देती हैं ; भले ही वे प्राय: ऊपरी तौर पर देह और दैहिकता की बात करने में झिझक नहीं रखतीं किन्तु वहाँ अगर प्रेम, राग और हर्ष की स्थूल छवियाँ हैं दूसरी ओर विषाद, विराग, दु:ख और पीड़ा की अनुगूँज भी। आइए ,आज साझा करते हैं रीता पेत्रो की पाँच कवितायें......
रीता पेत्रो की पाँच कवितायें
(अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह)
०१- तुम्हारे बिना
इस घर में
जो है खाली और जमाव की हद तक ठंडा
मुझे देती है गर्माहट
केवल तुम्हारी जैकेट।
इस घर में
जो है खाली और जमाव की हद तक ठंडा
मुझे देती है गर्माहट
केवल तुम्हारी जैकेट।
०२- मत चाहो प्रतिज्ञायें
चाभियों की तरह गुम हो जाते है वादे
मुझसे मत चाहो सतत प्रेम
पास ही दुबकी पड़ी हैं
अनंतता और मत्यु की छायायें
मत चाहो कि मैं कहूँ अनकहे शब्द
चीजों से कहीं ज्यादा अर्थ नहीं होता शब्दों का
चाहो तो बस इतना
कि मैं परिवर्तित कर सकूँ
तुम्हारे जीवन का एक क्षण।
हमने पी कॉफ़ी
कप के तल में बाकी रह गई थोड़ी तलछट
हमने पी सिग्रेट
कॉफ़ी की तलछट में बाकी रह गई थोड़ी राख़
हमने उच्चारे कुछ शब्द
मेरी आवाज बाकी रह गई खाली गिलास में
हमने नहीं किया प्यार
मेरी उम्मीद बाकी रह गई
मेरे हृदय के तल - अतल में।
०४- रहने दो मुझे
रहने दो मुझे जैसी हूँ मैं
अगर नींद मुझे पकड़ लेती है पेड़ों के बीच
हो सकता मैंने पहने हों आधे - अधूरे कपड़े
रहने दो मुझे जैसी हूँ मैं।
पे्ड़ों को और मुझे भी
भाता है पहनने और निर्वसन होने का कौतुक
वे सूर्य के समक्ष करते हैं यह काम
और मैं तुम्हारे।
०५- पूर्णत्व
ईश्वर... एक पुरुष
उसने अपने आँसू में रच डाली दुनिया
दुनिया...एक स्त्री
उसने अपने दु:ख में दिया इसे पूर्णत्व।
______
8 टिप्पणियां:
कविताओं को लेकर आपकी पसंद हमेशा दिलचस्प होती है। अच्छी हैं ये कविताएँ। अनुवाद भी बहुत अच्छा है।
बहुत सुंदर!
vaah ..
बहुत सुंदर रचना,,,
होली की हार्दिक शुभकामनायें!
Recent post: रंगों के दोहे ,
सुंदर कविताओं का सुंदर अनुवाद।
कमाल की कविताएँ
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-03-2013) के चर्चा मंच 1193 पर भी होगी. सूचनार्थ
khoobsurat. bahut dhanyawad is anuvad ke liye
एक टिप्पणी भेजें