कई दिन हुए कुछ लिखना हो न सका। नियमित लिखा जाय यह जरूरी तो नहीं। और सिर्फ लिखने के लिए लिखना....! आज अभी कुछ देर पहले ही कुछ यूँ - सा बन गया। अगर यह कविता है तो आज आपके साथा साझा करते हैं चार कवितायें। इनके वास्ते शीर्षक भी कुछ सूझ नहीं रहा है। फिर वही बात हर चीज को हर विचार को , हर भाव को शीर्षक की परिधि में बाँधा ही जाय यह भी तो जरूरी नहीं लेकिन अगर कुछ कहने का मन है तो उसे रोकना संभव भी तो नहीं। अब जो कुछ भी भीतर ही भीतर उमड़ - घुमड़ कर रहा था उसे शब्दों में बाँध दिया है ..बाँध देने की कोशिश की है..... आप देखे.. पढ़ें...
चार ( प्रेम) कवितायें शीर्षकहीन
01-
इस नए दिन में
जो कुछ भी है नयापन
वह तुमसे है।
उस बीते हुए दिन में
जो कुछ भी बचा रह गया है स्मरणीय
वह तुमसे है।
वह जो आने वाला है दिन
उसमें जो भी होगी सुन्दरता
उसे जीवन्त होना है
तुम्हारे ही स्पर्श से।
02-
गर्मियाँ शुरु हो गई है
अब सहा नहीं जाता घाम
उड़ने लगी है धूल।
जब भी देखता हूँ
किसी पेड़ के तले
सुस्ताती हुई छाँव को
सहसा याद आ जाता है तुम्हारा नाम।
03-
कई दिन हुए
शाम को गया नहीं छत पर निरुद्देश्य
गमले के मुरझाते फूलों से
बातचीत भी नहीं हुई कई दिनों से।
इधर बढ़ गया है काम- धाम
शाम होते - होते थक जाती है देह
कई दिन हुए तुम्हें ध्यान से देखे
कई दिनों से आधा - अधूरा लग रहा है
अपना ही वजूद।
04-
लोगों में रहता हूँ अकेला
कोरे कागजों को निहाराता हूँ ध्यान से
अख़बार बासी लगता है आते ही।
अक्सर लिखता हूँ एस.एम.एस.
और सेन्ड नहीं कर पाता।
कितना आसान है
सभा संगोष्ठियों में व्याख्यान देना
किन्तु
कितना कठिन और लम्बा है
'प्रेम' जैसे एक छोटे से शब्द का उच्चारण ।
16 टिप्पणियां:
इन कविताओं पर
मुग्ध होकर
मन सरस उठा!
वाह वाह!! भाव अविरल बहने दें भाई...चिन्ता न करें शीर्षक की..आनन्द आ गया. जारी रहिये...
वाह ! बेहतरीन !!
ati sunder......
कितना कठिन और लम्बा है
'प्रेम' जैसे एक छोटे से शब्द का उच्चारण
और जो कहते बने
तो फिर तासीर भी हो जाये
कम कम
bahut khoob!
जब भी देखता हूँ
किसी पेड़ के तले
सुस्ताती हुई छाँव को
सहसा याद आ जाता है तुम्हारा नाम।
gr8
कितना कठिन और लम्बा है
'प्रेम' जैसे एक छोटे से शब्द का उच्चारण
जाने कितने ही लोगों की मुश्किल आसान कर दी आपने तो.अब तो बस आपकी कविता का पता देने भर की ही जरुरत है
आप भी कमाल करते हैं। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी की कविताएं एक विशेष अर्थ में मुझे बेहद पसंद हैं और ये सारी कविताएं पढ़ते हुए मुझे बार - बार उनकी याद आ रही थी।
अब और क्या लिखेंगे बंधु, क्या रुला देने का इरादा है ?
मटुकजूली
आपकी प्रेम कविताओं को पढ़कर
हमारे मन में भी प्रेम की लहरें उठने लगीं!
सिद्धेश्वर भाई , बहुत प्यारी प्रेम कवितायें हैं , अब तो प्रेम को ब्रेकेट ( ) से बाहर निकाल दीजिये । और एस एम एस लिखना ही कठिन है वह आप कर लेते हैं सेंड भी कर दिया कीजिये ।
सुंदर कविताएं।
adbhut...!!
bahut achi kavita..
shandar. abhiboot karti kavitaayen. prem ki adbhut vyakhya. sabhar.
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