बुधवार, 25 दिसंबर 2013

बीत रहा है यह बड़ा दिन

आज का दिन बीत रहा है। आज का दिन अर्थात 'बड़ा दिन'। बीत ही चुका यह दिन। अभी तो  रात गहरा कर कर अधिया रही है। आइए , आज इस बीतते हुए दिन और बीतती हुई रात के साथ साझा करते है आज ही  कुछ देर पहले लिखी गई यह कविता.... 


बड़ा दिन

बीत रहा है यह बड़ा दिन
तारी है इक बड़ी - सी रात
सोचो तो
क्या किया आज कुछ बड़ा ?

कह दूँ
बिना बोले कोई बड़ा झूठ
देखता रहा
देखा किया
बहुत कुछ चुपचाप कोने में खड़ा।

शामिल 
नहीं हुआ किसी बड़ी बतकही में
सायास चुप्पी भी नहीं साधी बड़ी -सी
आदतन
बुदबुदाता रहा कुछ अस्फुट
नहीं थी वह कोई बड़ी  प्रतिज्ञा

कोई बड़ी प्रार्थना
न ही था वह कोई बड़ा प्रतिरोध।

बस शामिल रहा
एक बड़े दिन के  रीतते बडप्पन में
सोचता रहा कि लिखी जानी है एक बड़ी कविता
और पूरे दिन 

अनमना सा
सहेजता रहा 

तमाम बड़े हाथों से बरती गई 
एक छोटी - सी कलम
और पृथ्वी के आकार से भी बड़ा एक सादा कागज

अभी तो

बीत रहा है यह बड़ा दिन 
अभी तो
तारी है इक बड़ी - सी रात

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( * चित्र : मयंक गुप्ता की पेंटिंग 'एन्स्लेव्ड' , गूगल छवि से साभार )

7 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (26-12-13) को चर्चा - 1473 ( वाह रे हिन्दुस्तानियों ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Asha Lata Saxena ने कहा…

उम्दा रचना |किस्मस पर शुभ कामनाएं |

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

,अपने भावों समाहित करती सुंदर रचना...!
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कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

सुन्दर !किस्मस पर शुभ कामनाएं |
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सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुंदर !

राजेश उत्‍साही ने कहा…

और आखिर बीत ही गया...

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर