अभी कुछ देर पहले ही होली बैठकी से लौटा हूँ .मन मगन है.आज बहुत दिनों बाद इतनी रात में आसमान देखा -निरभ्र , खुला , विस्तीर्ण , अनंत, तारों से भरा...आ स मा न . विजया एकादशी क्या बीती कि होल्यारों की मौज शुरू हो गई दीख रही है.संगीत, स्वाद और सहिष्णुता से लबरेज रही आज की शाम. इतवार के दिन बहुत काम हो जाता है - औसत दिनों से कुछ अधिक आपाधापी और भाग दौड़ वाला .सुबह देर तनिक देर तक सोने का सुक्ख , फिर दूकान तक की हल्की दौड़ का दुक्ख.. दिन में दो अलग - अलग तरह के कार्यक्रमों में शामिल होने की दुनियादार हाय -हाय ये मजबूरी... कुछ कामधाम - कुछ भाषण -संबोधन जरूरी -गैर जरूरी.....दोपहर बाद के तीन बजते - बजते बुरी तरह चट गया था. खाना खाया और किताब पकड़ रजाई में स्थापित हो गया था. नींद आई लेकिन जल्द ही एक आत्मीय ब्लागर के फोन की घंटी से खुल गई..थोड़ी गपशप के बाद फिर रजाई में गुड़ुप्प..चाय के बाद मन के मँजीरे कुछ बजे. कुछ देर कंप्यूटर जी से जुगलबंदी की ..फिर बजी कालबेल .पता चला कि पड़ोसी जोशी जी डाक्टर जोशी जी के यहाँ आयोजित होली बैठकी में जाने को तैयार .. मय अपनी गड्डी के और यह सूचना भी कि इस नाचीज को वहाँ याद किया जा रहा है..चलो रे मना - व्यस्त रहने के लिए ही है इतवार बना।
आज सुबह- सुबह संगीत से सामना न हो सका था. यह कसर शाम को पूरे हो गई.. क्या रहा -कैसा रहा .. इस पर बात करना रपट लिखने जैसा होगा होगा. कहना इतना भर है कि दिन भर की थकान ,चटान सब दूर हो गई है और जैसे -जैसे रात गहरा रही है मन में हल्केपन की ध्वजा फहरा रही है थैंक्यू डाक्साब ! तो अब आप दवाइयों की बजाय संगीत से इलाज भी करने लगे !! अपना तो हो ही गया !!
रात है तो सोना भी है - सोना भी / ही पड़ेगा. सोने से पहले कुछ पढ़ना भी पड़ेगा. क्या पढूँ ? लग रहा है ' कुमाऊँनी होली संग्रह' से काम बन जाएगा शायद ...
राधे नंदकुँवर समुझाय रही
होरी खेलो फागुन रितु आय रही , राधे नंदकुँवर समुझाय रही.
बेला फूले , चमेली भी फूले , सर सरसों सरसाय रही
समझाय रही ,वो मनाय रही ..राधे नंदकुँवर समुझाय रही
अबीर गुलाल के थाल भरे हैं , केसर रंग छिड़काय रही
वो तो केसर रंग छिड़काय रही..राधे नंदकुँवर समुझाय रही.
साहब बहादुर खेलेंगे होरी....हाँ खेलेंगे होरी
संग लिए राधिका गोरी..राधे नंदकुँवर समुझाय रही.
बाकी सब ठीक . नई तारीख लग गई. अब तो आप भी शुरू कर ही लेवें अपनी होली अगर ना करी हो तो.. अगर करने का मन हो तो॥
बाबूजी , मैडमजी , दुनिया अपनी मौज में चलती रहेगी..दिल में होली जलती रहेगी.
क्या कहूँ ? शब्बा खैर या शुभ प्रभात ?