आज का दिन बीत रहा है। आज का दिन अर्थात 'बड़ा दिन'। बीत ही चुका यह दिन। अभी तो रात गहरा कर कर अधिया रही है। आइए , आज इस बीतते हुए दिन और बीतती हुई रात के साथ साझा करते है आज ही कुछ देर पहले लिखी गई यह कविता....
बड़ा दिन
बीत रहा है यह बड़ा दिन
तारी है इक बड़ी - सी रात
सोचो तो
क्या किया आज कुछ बड़ा ?
कह दूँ
बिना बोले कोई बड़ा झूठ
देखता रहा
देखा किया
बहुत कुछ चुपचाप कोने में खड़ा।
शामिल नहीं हुआ किसी बड़ी बतकही में
सायास चुप्पी भी नहीं साधी बड़ी -सी
आदतन
बुदबुदाता रहा कुछ अस्फुट
नहीं थी वह कोई बड़ी प्रतिज्ञा
कोई बड़ी प्रार्थना
न ही था वह कोई बड़ा प्रतिरोध।
बस शामिल रहा
एक बड़े दिन के रीतते बडप्पन में
सोचता रहा कि लिखी जानी है एक बड़ी कविता
और पूरे दिन
अनमना सा
सहेजता रहा
तमाम बड़े हाथों से बरती गई
एक छोटी - सी कलम
और पृथ्वी के आकार से भी बड़ा एक सादा कागज
अभी तो
बीत रहा है यह बड़ा दिन
अभी तो
तारी है इक बड़ी - सी रात
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( * चित्र : मयंक गुप्ता की पेंटिंग 'एन्स्लेव्ड' , गूगल छवि से साभार )