गुरुवार, 14 नवंबर 2013

क्योंकि वह एक परिवार खड़ा करना चाहते थे : रबिया अल ओसैमी

विश्व कविता से  अपनी  पसंदीदा कविताओं  के अनुवादों के जारी  सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए आइए आज पढ़ते हैं  एक छोटी - सी कविता  जिसका शीर्षक है 'फैमिली फोटो' । अपनी बात और  व्याप्ति में एक बेहद साधारण  और लगभग रोजमर्रा की की दुनिया को देखे जाने की एक निगाह का हमारा जाना - पहचाना दृश्य। लेकिन  इसकी साधारणता में  निहित विशिष्टता इसे कुछ अलग बनाती है ; ऐसा मुझे लगता है। 1975 में जन्मी सना, यमन की युवा कवि रबिया अल ओसैमी की यह कविता हो सकता है कि  आपको पसंद आए :


रबिया अल ओसैमी की कविता
फैमिली फोटो

वह जो खड़े हैं फोटो के बिल्कुल बीचोबीच
वे मेरे पिता है
वे एक परिवार खड़ा करना चाहते थे
ताकि आगे ले जा सकें अपना नाम
और उसका चित्र टांग सकें दीवार पर।

मेरी बड़ी बहन
खड़ी है एकदम दाहिने छोर पर
क्योंकि वह बहुत दूर तक नहीं ले जा सकती थी उनका नाम।

और क्योंकि यही सब मेरे साथ था
इसलिए मैं खड़ी हूँ फोटो के एकदम बायें छोर पर    

पाँच भाई हैं मेरे
जो चिपक कर खड़े हैं मेरे पिता के आजू - बाजू
वे  आगे ले जा सकते हैं उनका नाम
लेकिन बहुत दूर तक नहीं
हालांकि बहुत वजनी नहीं है पिता का नाम
कि उसे ढोने ने लिए
पैदा की जाय लड़कॊ की एक टोली।

और अब उसके बारे में एक उल्लेख
जो खड़ी है मेरी बहन के बगल में
वह मेरी माँ है
बेचारी औरत....वह ब्याही गई मेरे मेरे पिता के संग
क्योंकि वह एक परिवार खड़ा करना चाहते थे
ताकि आगे ले जा सकें अपना नाम
और उसका चित्र टांग सकें दीवार पर।
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(अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह  / पेंटिंग : फेथ टे  की  कृति  'गीन चिली पेपर फैमिली '  , गूगल छवि से साभार)

3 टिप्‍पणियां:

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/शुक्रवारीय अंक ४४ दिनांक १५/११/२०१३ में आपकी इस पोस्ट को शामिल किया गया हैं कृपया अवलोकन हेतु पधारे धन्यवाद

Onkar ने कहा…

बहुत प्रभावशाली रचना

दीपा पाठक ने कहा…

जबरदस्त कविता और बेहतरीन अनुवाद। बिना अनुमति लिये फेस-बुक पर शेयर कर दी है। मुआफी !