अली अहमद सईद अस्बार को विश्व कविता के प्रेमी उनके उपनाम अडोनिस के नाम से जानते हैं। १९३० में सीरिया में जन्मे और हाल मुकाम पेरिस के अरबी भाषा के अनुवादक , संपादक , सिद्धांतकार और शिक्षक के रूप में दुनिया भर में चर्चित - पुरस्कृत इस बड़े कवि की तीन छोटी कवितायें आज साझा हैं :
अडोनिस की तीन कवितायें
(अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह)
दो कवि
अनुगूँज और आवाजों की
सतत उपस्थिति के मध्य
खड़े हैं दो कवि।
पहला
बोल रहा है ऐसे
जैसे कि बोल रहा हो टूटा चाँद
और दूसरा
चुप है ऐसे जैसे कि कोई शिशु
ऐसा शिशु
जो शयन करता है हर रात
ज्वालामुखी की भुजाओं में।
मेघ दर्पण
पंख
किन्तु मोम से बने बनाए
और बारिश का गिरना
बारिश नहीं बल्कि केवट
हमारी रुलाइयों के जलयान के।
कवि
उनके लिए कोई जगह नहीं
वे ताप देते हैं पृथ्वी की देह को
वे निर्मित करते हैं
आकाश के लिए कुंजियाँ।
वे नहीं रचते हैं
कोई कुटुम्ब , कोई भवन
अपने मिथकों के वास्ते
वे लिखते हैं उन्हें
जैसे कि सूर्य लिखता है अपना इतिहस।
कोई जगह नहीं
उनके लिए....।
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( चित्र : अन्ना वोत्ज़जाक की 'मून' सीरीज की चित्रकृति , गूगल छवि से साभार)
7 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर. सटीक अनुवाद.
आभार।
बहुत सुंदर अनुवाद ,,,आभार
RECENT POST : तस्वीर नही बदली
परिकल्पना ब्लॉग के ज़रिये आप तक आया..ब्लॉगपोस्ट पढ़ मन को अतीव प्रसन्नता हुई...साथ ही परिकल्पना साहित्य सम्मान पाने के लिये हार्दिक बधाई...
वे निर्मित करते हैं
आकाश के लिए कुंजियाँ।
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कवि को नमन!
कर्मनाशा ब्लॉग पर 310वीं पोस्ट के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई!
सुन्दर अनुवाद । बधाई
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