09 जनवरी 2011, रविवार का दिन बहुत अच्छा गुजरा। ऐसे समय में जबकि ठंड अपने चरम है व पारा काफी नीचे तक चला जाता है। सुबह , शाम और रात कोहरे के आवरण में डूबी रहती है। सूरज दिखाई नहीं देता ; बस उसके होने का आभास रहस्यमयी रोशनी कराती रहती है तब सुख का सूरज उगे और आभासी दुनिया के बाशिन्दे एकाएक प्रकट होकर अपनत्व की ऊष्मा बिखेर जायें तो भला किसे अच्छा नहीं लगेगा। कुछ ऐसा ही हुआ 09 जनवरी 2011, रविवार के दिन। आजकल कुहरीली - सर्द सुबह में सबसे पहले मुँह से राणा जी लिए धन्यवाद निकलता है जो अखबार डाल जाते हैं और उसके धन्यवाद - आभार के लिए तो दुनिया की किसी भाषा में कोई शब्द ही नहीं है जिसके हाथों से बनी फीकी चाय जीवन में मिठास घोले हुए है। चाय के साथ अखबार 'अमर उजाला' की जुगलबंदी शुरू हुई तो रविवासरीय परिशिष्ट 'जिन्दगी लाइव' तक आते - आते मन मुदित हो गया क्योंकि वहाँ अपनी एक कविता ' इस ठंड के आगे' प्रकाशित दीख रही थी। अपने सोचे, गुने , बुने संवेदन को छपे हुए शब्दों के रूप में देखना सुखकर लगा सुबह - सुबह।
11 बजे से 'मयंक' जी की दो सद्य प्रकाशित पुस्तकों का विमोचन या लोकार्पण समारोह था और इसी के साथ 'हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में ब्लॉगिंग की भूमिका' पर चर्चा के निमित्त 'ब्लागर मीट' का आयोजन भी किया गया था। रात में बाहर से आए साहित्यकारों - ब्लॉगरों ने मिलकर एक कवि गोष्ठी भी की थी जिसमें आमंत्रण तो था किन्तु ठंड व कुहरे की अधिकता के कारण उसमें शामिल होना संभव न हो सका और गोष्ठी का लाइव आनंद मैंने अपने कंप्यूटर के माध्यम से उठाया था। 'मयंक' जी एक सहृदय व्यक्ति हैं। उनके आमंत्रण पर पर बहुत सारे लोग बाहर से आए हुए थे जिनको मैंने अब तक केवल पढ़ा था। हिन्दी ब्लॉग की बनती हुई दुनिया के माध्यम से सोच - संवेदना और सहभागिता का जो एक सार्वजनिक संसार निरंतर निर्मित हो रहा है उसके एक साक्षात रूप से यह एक तरह से मेरा लगभग पहला परिचय था। इससे पहले भिलाई , दिल्ली और मेरठ में कई ब्लॉगर मित्रों से बहुत संक्षेप में मिल चुका हूँ लेकिन आज उनके साथ और उनके बीच दिए गए विषय पर कुछ बात करनी थी , सुननी थी और हिन्दी भाषा व साहित्य के बरक्स ब्लॉगिंग - विमर्श का सहभागी बनना था। छोटे - से कस्बे खटीमा से सटे एक गाँव अमाऊँ में इस तरह का आयोजन एक नई चीज थी।
'मयंक' जी की दो सद्य प्रकाशित पुस्तकों ' सुख का सूरज ' और ' नन्हें सुमन' का विमोचन - लोकार्पण केवल इस अर्थ में ही अलग और विलक्षण नहीं कहा जाएगा कि इसका लाइव प्रसारण इंटरनेट के जरिए पूरे विश्व में देखा सुना गया बल्कि इस अर्थ में भी यह अलग है कि दोनो संग्रहों में प्रकाशित कवितायें हिन्दी ब्लॉग की बनती हुई दुनिया से निकली हैं। ब्लॉगिंग को लेकर हमारे नामचीन साहित्यकारों और पत्रिकाओं को प्राय: यह शिकायत रहती है वहाँ गंभीरता नहीं व त्वरित प्रकाशन व आत्मालोचन, आत्म- अनुशासन की शिथिलता के कारण बहुत कुछ अच्छा - स्तरीय नहीं आ पा रहा है। यह बात कुछ सीमा तक ठीक हो सकती है किन्तु इसमें कोई दो राय नहीं कि संचार के साधनों की सहज उपलब्धता व सूचना के समान वितरण की प्रक्रिया ने बहुत सारे लोगों को अपनी संवेदना व सोच को साझा करने का एक मंच ब्लॉगिंग के माध्यम से उपलब्ध कराया है। हिन्दी में यह बहुत पुराना भी नहीं है और संख्या व परिमाण की दृष्टि से विश्व की अन्य भाषाओं के मुकाबले बहुत समृद्ध भी नहीं है फिर भी नई शताब्दी में नई चाल में ढलती हुई (नई) हिन्दी की नब्ज को पकड़ने और साहित्य की विपुल थाती को सहेजने, उसका दस्तावेजीकरण करने की दिशा में ब्लॉगिंग की बहुत बड़ी भूमिका है। इस नजरिए से ब्लॉगिंग मुझे एक गंभीर सांस्कृतिक कर्म लगता है और उसमें किया जाने वाला योगदान 'निज भाषा' की उन्नति की दिशा में एक सतत प्रयास की तरह दिखाई देता है जिसका प्रतिफल आज और अभी पा लेना शायद बहुत जल्दबाजी होगी।
'सुख का सूरज' 'और 'नन्हें सुमन' का लोकार्पण रचनाकार के घर पर उनके माता - पिता और परिवारजनों , इष्ट मित्रों की उपस्थिति में हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व प्राचार्य डा० इन्द्र राम जी ने की । इस अवसर पर मुख्य अतिथि अविनाश वाचस्पति और विशिष्ट अतिथि रवीन्द्र प्रभात रहे। जैसा कि ऊपर कहा गया है कि दोनो संग्रहों की कवितायें हिन्दी ब्लॉग की बनती हुई दुनिया से निकली हैं और इस बात को बहुत उदारता से रचनाकार डा० रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक' ने अपने 'दो शब्द' में स्वीकार भी किया है लेकिन केवल इतना ही नहीं है; दोनो पुस्तकों की भूमिका और फ़्लैप लेखन में प्रसिद्ध साहित्यकारों प्रो० वाचस्पति, डा० राष्ट्र बंधु, आशा शैली 'हिमाचली' के अतिरिक्त सुपरिचित ब्लॉगर ही शामिल हैं जैसे - रावेंद्र कुमार 'रवि' , अजित वडनेकर , समीर लाल 'समीर', पी०सी० रामपुरिया, अलबेला खत्री. डा० नूतन गैरोला, अविनाश वाचस्पति, वन्दना गुप्ता आदि। आरती प्रकाशन लालकुआँ ,नैनीताल द्वारा प्रकाशित दोनो पुस्तकें लोकार्पित हुईं। रचनाकार के पौत्र प्रांजल और पौत्री प्राची के साथ छोटी बच्ची मनीषा ने मिलकर वंदना व स्वागत गान गाया। सगीर अशरफ, डा० गंगाधर राय, देवदत्त 'प्रसून' , गुरु सहाय भटनागर 'बदनाम' और डा० अशोक शर्मा ने किताबों पर अपनी समीक्षात्मक चर्चा की साथ ही और भी कई लोगों ने कविता , किताब व कवि के बाबत 'दो शब्द' कहे , कविता पाठ किया। यदि सबके नाम गिनाना शुरूँ करूँ तो पूरा पृष्ठ भर जाएगा। महत्वपूर्ण यह नहीं है किसने क्या कहा क्योंकि यह सबकुछ स्थानीय अखबारों में छप चुका है और विभिन्न ब्लॉगों तथा वेब पत्रिकाओं के माध्यम से देश - दुनिया में विस्तारित हो चुका है। महत्वपूर्ण यह है कि आज की दुनिया में जब तमाम तरह की भौतिक सुविधाओं की प्रचुर उपलब्धता के बावजूद यदि हमारे पास सबसे कम कोई चीज उपलब्ध है तो व है समय और दूसरे के महत्व को स्वीकार करते सहज संवाद का रचाव। ऐसे समय और संसार में मौसम की प्रतिकूलता को परे करते हुए और दूरी - दुर्गमता को दूर करते हुए एक छोटे - से उनींदे गाँव में ढेर सारे लोगों का मिल - बैठ कर शब्द की सत्त्ता का सानिध्य प्राप्त करना और पूरी दुनिया में उसके सजीव प्रसारण का सहभागी बनना सुखकर आश्चर्य ही कहा जाएगा।
'हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में ब्लॉगिंग की भूमिका' पर विषय प्रवर्तन करते हुए
रवीन्द्र प्रभात ने आँकड़ों के माध्यम से हिन्दी ब्लॉगिंग का एक खाका प्रस्तुत किया , हिन्दी भाषा व साहित्य की नई रचनाशीलता , नए भाषाई संस्कार, सृजन की नई त्वरा, साहित्य के मल्टीमीडिया प्रेजेंटेशन और ब्लॉगिंग के माध्यम से अवतरित हो रहीं एक से एक एक्स्क्लूसिव चीजों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे इस काम की उपादेयता व गुणवत्ता का महत्व आने वाला समय बताएगा इसलिए सचेत, सजग व सहभागी होते हुए सार्थक रचने की जरूरत है।
पवन चंदन ने कई उद्धरणॊं के माध्यम से ब्लॉगिंग के विकास व विस्तार पर प्रकाश डाला।
रणधीर सिंह 'सुमन' ने कहा कि बहुत से स्थापित साहित्यकारों का रुझान ब्लॉगिंग की ओर हो रहा है; यह एक शुभ संकेत है।
राजीव तनेजा ,
केवल राम,
पद्म सिंह और
मनोज पांडेय ने भाषा , साहित्य, समाज और ब्लॉगिंग के अंतर्संबंधों के विविध पक्षों को उद्घाटित किया। मुख्य अतिथि
अविनाश वाचस्पति ने ब्लॉगिंग के वर्तमान के प्रति आश्वस्ति प्रकट करते हुए इसके भविष्य को लेकर सजग व क्रियाशील होने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि विद्याथियों को हिन्दी भाषा में कंप्य़ूटिंग और ब्लॉगिंग के प्रति रुचि जागृत करके उद्देश्य से स्कूलों में कार्यशालाओं का अयोजन किया जाना चाहिए ताकि आज जो लोग भी इस दिशा में कार्य कर रहे हैं उसे आगे बढ़ाते हुए एक नई दिशा का निर्माण संभव हो सके। कार्यक्रम अध्यक्ष डा० इन्द्र राम ने कहा कि यह उनके लिए एक नया अनुभव है जब साहित्य और ब्लॉगिंग से जुड़े रचना धर्मियों का सानिध्य एक छोटे से कस्बे से जुड़े इस गाँव को प्राप्त हो रहा है। सुबह जिस गर्मजोशी से
'मयंक' जी ने सभी स्वागत किया था उसी गर्मजोशी से उन्होंने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। इस पूरे कार्यक्रम का सफल - सुंदर संचालन
'सरस पायस' के संपादक रावेंद्र कुमार रवि ने किया। जबलपुर में बैठे
गिरीश बिल्लौरे 'मुकुल' के श्रम , संयोजन व स्नेह से इस आयोजन की लाइव कवरेज इंटरनेट के जरिये पूरी दुनिया में व्यापती रही। यह काम निश्चित रूप से एक बड़ा और हिन्दी ब्लॉगिंग के लिए दूरगामी प्रभाव छोड़ने वाला काम है।
ठंड दिन भर रही और शाम घिरने के साथ ही अपनी तीव्रता को वह और बढ़ाने के उपक्रम में लग गई थी। इस बीच कॉफी की चुस्कियों और मौर्या कैटरर्स के सुस्वादु भोजन ने ठंड को कुछ कम किया। किताब , कविता , भाषा , साहित्य और ब्लॉग - चर्चा से भरे - पूरे इस एक दिन में मैं अपने पूरे परिवार के साथ शामिल रहा। दिल्ली, धर्मशाला ( हिमाचल प्रदेश) , लखनऊ, बेतिया ( बिहार) जैसे दूरस्थ स्थानों से आए ब्लॉगर मित्रों से मिलना एक नया अनुभव था। आभासी दुनिया के बाहर की वास्तविक दुनिया में एक दूसरे के लिखे - कहे शब्दों से कहीं अधिक उन शब्दों ने प्रभावित किया जिनका उच्चारण हुआ ही नहीं और दुनिया की किसी भी भाषा में उनका अनुवाद संभव नहीं हैं , न ही वे कैमरे व मोबाइल की आँख में कैद ही किए जा सकते हैं क्योंकि उनका होना केवल अनुभव किया जा सकता था ठीक वैसे ही जैसे कि आजकल की कुहरीली सुबह में सूरज के होने व उसकी उसकी ऊष्मा को महसूस किया जा रहा है। ' इस ठंड के आगे' शीर्षक कविता के साथ आज की सुबह हुई थी और अब जबकि शाम घिर रही थी और मुझे बच्चों के स्कूल के गेट पर जाकर पता करना था कि उनकी जाड़े की छुट्टियाँ कही अत्यधिक शीत के कारण बढ़ तो नहीं गईं तो महसूस हुआ कि जिस तरह 'इस ठंड के आगे' वसंत की अगवानी की राह खुलती है ठीक वैसे ही शब्द की सत्त्ता कायम है , कविता है और रहेगी तथा आभासी दुनिया केवल अपने होने का आभास ही नहीं कराती बल्कि व जब वह अपने आवरण से बाहर आती है इसी दुनिया में मानवीय स्पर्श और पारस्परिक सौहार्द्र के 'सुख का सूरज' उदित होता है तथा जिन्दगी के ऊबड़ - खबड़ रास्तों पर 'नन्हें सुमन' खिलते दिखाई देते हैं।
और अंत में....
'हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में ब्लॉगिंग की भूमिका' पर मुझे भी कुछ कहना था; कहा भी , उसकी चर्चा कभी अलग से। रात में कवि गोष्ठी देखते - सुनते और कंप्यूटरीय संसार से बाहर ब्लॉगर मीट का ट्रेलर कंप्यूटर की काया पर देखते हुए (अंग्रेजी में ) कविता जैसा कुछ लिख दिया था उसे साझा कर लेते हैं :
Bloggers Meet
Oh this is the day
When new year greetings are still afresh.
Resolutions are not scattered in air
And we are hopefully ignoring the mess.
This is the day
This is January nine.
Here in a small town of ours
Weather is not at all fine.
Last night was frozen
And dawn was enveloped in fog
But at this moment
A galaxy of musings has come into view
And we are sharing the thing called ‘blog’.
A day with warmth of words and views
This is a real good sign
On this auspicious day
Online people are meeting offline.