रविवार, 18 जुलाई 2010

मेरठ से निकली हिन्दी बात




आज का अख़बार बता रहा है : 'नाथू ला पहुँची क्वींस बेटन। ७१ राष्ट्रंडल देशों से गुजरती हुई यह बेटन भारत में २० हजार  किलोमीटर का सफर तय करेगी।सब जानते हैं कि जल्द ही अपने देश में राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन होने जा रहा है और यह सब उसी की तैयारी / रस्म का एक  हिस्सा है। इन खेलों का आयोजन बढ़िया तरीके से हो, बाहर से आने वाले खिलाड़ियों और खेल प्रेमियों को कोई कष्ट न हो , सब कुछ ठीकठाक हो साथ ही अपनी झोली में ढेर सारे पदक आयें ; यह कौन नहीं चाहता है ! लेकिन मेरठ के लोग  इससे कुछ अधिक भी चाहते हैं । वे चाहते हैं कि राष्ट्र मण्डल खेलों में हिन्दी प्रयोग को बढ़ावा दिया जाय। इस मुहिम को गति देने के लिए  राजभाषा समर्थन समिति का गठन किया गया है। यह समिति केवल कागजी नहीं वरन अपने उद्देश्य को पूरा करने के क्रम में जनसमर्थन  औत्र जन सहभागिता के काम को गंभीरता के साथ अंजाम भी दे रही है। इसमें चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ और उसके हिन्दी विभाग की सक्रिय भूमिका है।

हिन्दी लिखने - पढ़ने - बोलने वालों  की एक बड़ीजमात को पता है कि पिछले कुछ वर्षों में मेरठ विश्वविद्यालय और वहाँ के हिन्दी विभाग ने अपनी एक  विशिष्ट पहचान निर्मित की है तथा पठन - पाठन के साथ विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों की  निरंतरता बनाए रखी है। इसी क्रम में  07 जुलाई, 2010  विश्वविद्यालय के सुसज्जित सभागार बृहस्पति भवन में राजभाषा समर्थन समिति की बैठक का आयोजन किया गया जिसमें  मेरठ के सांसद तथा संसदीय राजभाषा समिति के सदस्य राजेन्द्र अग्रवाल , हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर नवीन चंद्र लोहनी, सेवानिवृत न्यायाधीश एस0 पी0 त्यागी, रासना कॉलेज के प्राचार्य डॉ0 नन्द कुमार, डॉ0 आर0सी0 लाल, डॉ0 शिवेन्द्र सोती , एडवोकेट मुनीष त्यागी, पत्रकार हरि शंकर जोशी , शिक्षा संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो0 आई0 आर0 एस0 सिंधु , डॉ0 असलम जमशेदपुरी  व अन्य वक्ताओं ने हिन्दी के सर्थन में अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम के अध्यक्ष कुलपति प्रो0 एस0 के0 काक   ने कहा कि अगर आप अपनी भाषा का सम्मान करेंगे, गर्व करेंगे तो दूसरे लोग भी करेंगे। हिन्दी को हमें इस प्रकार विकसित करना होगा कि हम इसे अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करें।  इसे अर्न्तराष्ट्रीय भाषा बनाने के लिए हमें  विस्तृत दृष्टिकोण अपनाना पड़ेगा। हिन्दी भाषा बोलने के लिए पहले अपनी भाषा में यकीन, अनुशासन, स्वयं का दृढ़निश्चय होना चाहिये। उन्होंने कहा कि मैं इस पूरे प्रस्ताव के साथ हूँ और इसके लिए जहाँ तक जाना होगा साथ दूँगा। 

कार्यक्रम की सहयोगी संस्थाओं के रूप में दैनिक हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, दैनिक अमर उजाला, फैज-ए-आम डिग्री कॉलेज, मेरठ, मानस सेवा संस्थान, सांस्कृतिक परिषद्, वरिष्ठ नागरिक मंच सहित कई संस्थाओं ने राजभाषा समर्थन समिति की इस पहल का समर्थन किया। कार्यक्रम का संचालन हिन्दी विभाग के शोध छात्र रविन्द्र राणा एवं डॉ0 विपिन कुमार शर्मा ने किया। अतिथियों का आभार कार्यक्रम के संयोजक डॉ0 नवीन चन्द्र लोहनी ने किया। इस अवसर पर सुमनेश सुमन ने हिन्दी के समर्थन में कविता भी सुनाई। कार्यक्रम में डॉ0 रवीन्द्र कुमार, डॉ0 गजेन्द्र सिंह, सीमा शर्मा, नेहा पालनी, डॉ0 आशुतोष मिश्र, अंजू, अमित कुमार, ललित सारस्वत, विवेक, सहित हिन्दी विभाग के छात्र-छात्राओं तथा शहर के वरिष्ठ नागरिकों पत्रकारों, वकीलों, शिक्षकों तथा विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने भाग लिया। इस महत्वपूर्ण बैठक में  वक्ताओं ने  'राष्ट्र मण्डल खेलों में हिन्दी प्रयोग को लेकर विचार विमर्श किया और अंततः प्रस्ताव पारित हुआ कि राष्ट्र मण्डल खेलों में अनिवार्यतः हिन्दी प्रयोग कराने के लिए सरकार और आयोजनकर्ता संस्थाओं को कहा जाएगा। इसके लिए प्रधानमंत्री,  राजभाषा विभाग तथा राष्ट्रपति से भी मिला जाएगा, संसद में सवाल उठेंगे और दिल्ली में यहाँ के आन्दोलन की दमक पूरी शिद्दत के साथ पहुँचाई जाएगी।'  इस कार्यक्रम की विस्तृत रपटें पत्र - पत्रिकाओं और वेब माध्यमों पर आ चुकी हैं और आ रही हैं।

मेरठ हिन्दी का मायका है , आधुनिक हिन्दी की की उत्स भूमि, हिन्दी की उर्वर भूमि।राष्ट्र मण्डल खेलों में हिन्दी प्रयोग को लेकर मुहिम छेड़ने वाली राजभाषा समर्थन समिति से जुड़े व्यक्तियों और संस्थाओं का मानना है कि यह काम केवल खेलों के आयोजन उनमें हिन्दी के प्रयोग तक ही सीमित नहीं है अपितु राजभाषा के रूप में हिन्दी की  भूमिका और स्थिति को वास्तविक  और सुदॄढ़ करने के काम में निरन्तर सक्रिय रहेगी और जब  , जहाँ , जैसी आवश्यकता होगी वहाँ अपनी भूमिका का सक्रिय निर्वाह करते हुए सार्थक हस्तक्षेप करती रहेगी। यह एक नेक काम है और हिन्दी की दुनिया से जुड़े लोगों के लिए जरूरी भी। इसके उद्देश्य को  अपने स्तर पर  प्रचारित - प्रसारित करने तथा इस इसमें अपना योगदान देने के लिए हिन्दी बिरादरी को आगे आना चाहिए। 
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* ( इस संदर्भ में अधिक जानकारी व जुड़ाव के लिए हिन्दी विभाग की वेब पत्रिका  मंथन'  पर जाया जा  सकता है)

8 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़ा सुन्दर प्रयास।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

यह प्रयास हिन्दी को विश्व में प्रतिस्थापित करने में मील का पत्थर साबित होगा!

Ashok Kumar pandey ने कहा…

हमारी भी शुभकामनायें

शरद कोकास ने कहा…

सही कहा आपने मेरठ हिन्दी का मायका है ।

रचना दीक्षित ने कहा…

एक सराहनीय कार्य

डॉ. विवेक सिंह ने कहा…

कर्मनाशा मैं आपने हमारे प्रयास को जगह दी है हम आभारी हैं हमरे इस प्रयास का संबल, आप लोगों की लगातार हिंदी को लेकर की जा रही अभिव्यक्ति का हिस्सा है, हिंदी को देश मैं उसकी जगह मिले इसके लिए सभी को साथ साथ चलाना होगा. आइये साथ साथ कहते हैं सरकारें अपना दायित्व टीक से निर्वहन करें एवं संविधान मैं राजभाषा के दिए गए प्रावधानों को लागू करें......प्रो. नवीन चन्द्र लोहानी

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

सिद्धेश्वर जी,
राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान राजभाषा हिंदी को बढ़ावा दिए जाने से निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी का गौरव बढ़ेगा। हिंदी की बेहतरी के लिए जो भी संभव प्रयास हों, सभी को करने चाहिए। यह वक्त की जरूरत है। मेरठ से शुरू हुए इस आंदोलन को पूरा देश समर्थन दे, ऐसे प्रयास होने चाहिए।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत उपयोगी और संग्रह करने योग्य पोस्ट!