बुधवार, 14 जुलाई 2010

बारिश और निज़ार क़ब्बानी की कविताओं की दो बूँदें


निज़ार क़ब्बानी (( 21 मार्च 1923 - 30 अप्रेल1998 )  की  कविताओं के अनुवाद आप पहले कई बार 'कर्मनाशा' और 'कबाड़खा़ना' पर तथा एकाधिक बार 'अनुनाद' पर पढ़ चुके हैं। कुछेक कवितायें अख़बारों - पत्रिकाओं में भी आई हैं / शीघ्र आ रही हैं।  सीरिया और अरब जगत के सर्वाधिक प्रसिद्ध कवियों में से एक  इस कवि की कविताओं से गुजरना 'प्रेम में होना' है। इस कवि की कविताओं का अनुवाद करते हुए मुझे बहुत अच्छा लगा। यह क्रम अभी जारी है। आजकल बारिश का मौसम है। आइए , इस मौसम में निज़ार की इन दो प्रेम कविताओं की आर्द्रता अपने भीतर तलाशने का उपक्रम करें।

                         
                                                         

निज़ार क़ब्बानी की दो कवितायें
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह)

* बारिश-०१

हम दोनों पर
जब भी गिरती है बारिश
उगने लगते हैं हजारों पौधे
हमारी पोशाकों पर।

बिसरा दिया है तुमने
जबसे मुझको
बारिश अब भी गिरती है
अकेले मुझ पर।

लेकिन जन्म नहीं लेता है
नन्हा - सा भी बिरवा कोई एक
मेरे कोट पर।

* * बारिश-०२

बारिश से भरी रात की तरह
हैं तुम्हारी आँखें
जिनमें डूबती जाती है मेरी नाव।

अपनी ही प्रतिच्छाया में
लुप्त होती जाती है
मेरी तहरीर।

नहीं होती
होती ही नहीं
आईनों के पास
याददाश्त जैसी कोई चीज।
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* निज़ार क़ब्बानी की कुछ कवितायें 'सबद' पर भाई अनुराग वत्स ने बहुत प्रेम से प्रकाशित की हैं। उनके प्रति आभार। यदि आपके पास समय हो और मन करे तो वहाँ भी हो आयें!
* चित्र डेनियल वाल की कलाकृति। साभार: गूगल सर्च।

12 टिप्‍पणियां:

पारुल "पुखराज" ने कहा…

अद्भुत हैं ये .. बेहतरीन

राजेश उत्‍साही ने कहा…

कब्‍बानी जी की कविता में बहुत संवेदना है। पढ़वाने के लिए शुक्रिया।

Udan Tashtari ने कहा…

होती ही नहीं
आईनों के पास
याददाश्त जैसी कोई चीज।


दोनों ही रचनायें पढ़कर आनन्द आया..आभार.

Ashok Kumar pandey ने कहा…

सुन्दर…मोहक…

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

मौसम के अनुकूल कविताओं का चयन और
सुन्दर अनुवाद!
--
आपकी इसी विद्वता के तो हम भी कायल है!
--

Rangnath Singh ने कहा…

ऐसी चीजें जिन्हें देखते ही चुराने की जी हो आए...

Pratibha Katiyar ने कहा…

Behad sundar!

Anup sethi ने कहा…

बहुत खूब!

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) ने कहा…

आह! बहुत ही खूबसूरत..

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कब्‍बानी जी की कविता पढ़वाने के लिए शुक्रिया ....

शरद कोकास ने कहा…

बहुत सुन्दर कवितायें पढ़वाईं हैं सिद्धेश्वर भाई आपने । धन्यवाद ।

varsha ने कहा…

नहीं होती
होती ही नहीं
आईनों के पास
याददाश्त जैसी कोई चीज।
sach hai. achchi kavitaen.