गुरुवार, 24 जून 2010

सखि हे ! कि पूछसि अनुभव मोय


* सखि हे ! कि पूछसि अनुभव मोय।
सोइ पिरीति अनुराग बखाइनते
तिले तिले नूतन होय॥
जनम अवधि हम रूप निहारल
नयन न तिरपत भेल।

* कुछ दिन पूर्व इसी ठिकाने पर महाकवि विद्यापति के एक सुप्रसिद्ध पद की पुनर्रचना प्रस्तुत की थी। इसी क्रम को एक बार और विस्तार देते हुए आज एक अन्य पद प्रस्तुत है। 'मैथिल कोकिल ' व 'अभिनव जयदेव' कहे जाने वाले रचनाकार की 'पदावली' का आकर्षण सैकड़ों वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी कम नहीं हुआ है और दुनिया भर की भाषाओं में उसके अनुवाद व उससे प्रेरित रचनायें प्रस्तुत होती रही हैं / होती रहेंगी। इनमे केवल राधा - माधव का प्रेम नहीं है अपि्तु यह हमारे अंतस में अवस्थित रागात्मकता को भारतीय साहित्य की सुदीर्घ परम्परा के साथ जोड़कर आज के 'कलित कोलाहल' वाले समय में भीतर की उजास व तरलता को बचाए रखने का एक उपक्रम भी है और हाँ , साहित्य / कविता के कालजयी होने का सबूत तो वह है ही साथ ही 'देसिल बयना' की मधुरता का परिचायक भी। तो आइए, आज देखते - पढ़ते हैं अपनी प्रिय पुस्तक 'विद्यापति' ( डा० शिवप्रसाद सिंह ) में संकलित पद संख्या : १०२ की काव्यात्मक पुनर्रचना :
*
सखि हे ! कि पूछसि अनुभव मोय
( महाकवि विद्यापति के पद की पुनर्रचना )

हे सखी !
क्या पूछती हो मेरे अनुभव का मर्म ?

शताब्दियों से जारी है
प्रीति और अनुराग का बखान
फिर भी नित्य हर पल होता जाता है
इस सरणि में नूतनता का समावेश !

आजन्म निहारते रहे हम रूप
तब भी नयनों को नहीं मिल सकी तृप्ति
समूचा भुवन सुनता है उसके मधुर बोल
फिर भी श्रुतिपथ से
मिट न सका उसकी वाणी का स्पर्श !

न जाने कितनी रातों को
गँवा दिया संयोग के आनन्द अंबुधि में
फिर भी समझ न आया
कि आखिर किसे कहा जाता है केलि !

लाख - लाख युगों तक
उसे हृदय में बसाए रक्खा
तब भी संभव न हुआ
प्राणों में शीतलता का किंचित संचार !

जैसे - जैसे करते रहे हम
रसिक जनों की बताई राह का अनुगमन
वैसे - वैसे ही होता रहा
अपने ही अनुभव की अर्थवत्ता पर सतत संदेह !

यह सब कह कर
दूर होता है कवि विद्यापति के मन का ताप
एक ही बात को
भले ही कहा जाय कितनी तरह से
फिर भी लगता है
जैसे पहली बार
लिया जा रहा है राधा माधव का नाम।

3 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

आभार इसे प्रस्तुत करने का.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपके इस सार्थक और उपयोगी प्रयास से
हिन्दी के छात्रों को बहुत सहायता मिलेगी!

शरद कोकास ने कहा…

यह भी उम्दा ।