शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

टप - टप चुएला पसिनवा बलम ..



*****आज गर्मी से तनिक राहत है । सुना जा रहा है कि उपर पहाड़ों पर बारिश अच्छी हुई है और उसका खुशनुमा असर यहाँ तलहटी में साफ दीख रहा है आज पसीने से देह चिपचिप नहीं हो रही है और खुद को भला - सा लग रहा है , लेकिन ऐसा कभी - कभी होता है । ऐसा कभी - कभार होना ही भला है, अगर रोज ही जिन्दगी की धूप में किसी का / किन्हीं चीजों का घना साया बना रहे तो मौसम की लय टूट जाएगी और सब नीरस - सा लगने लगेगा अतः परिवर्तन / बदलाव आवश्यक है । हर मौसम का अपना रंग , अपनी खूबी है इस बात को साहित्य और संगीत की दुनिया में खूब समझा गया है !

****चलिए आज सुनते हैं मौसम के विविध रंगों से सराबोर एक बारहमासा जिसे स्वर दिया है पं० विद्याधर मिश्र ने.....




टिप्पणी : इस गीत को आज दोपहर में तब अपलोड किया था जब काम के बीच में थोड़ी फुरसत मिली थी लेकिन वहाँ आफिस में सुनने की सुविधा / गुंजाइश नहीं थी. शाम को घर आकर देखा तो पता चला कि थोड़ी दिक्कत है। अब वह दूर कर दी गई है । सो सुनें और इस बारहमासे की छाँव में तपन से तनिक राहत महसूस करें !आपको हुई असुविधा के लिए क्षमा !

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत ही सुन्दर बारामासा गीत!
आनन्द आ गया!
इसे सुनवाने के लिए आपका आभार!

अमिताभ मीत ने कहा…

पसीना त अबहियों चू रहल बा. बाकिर गीत सुन के मस्त बानी.