सोमवार, 19 अप्रैल 2010

तुम्हारे पाँव

इधर कुछ समय से कई तरह की व्यस्तताओं और यात्राओं के चलते लिखना - पढ़ना लगभग छूटा - सा हुआ है। देह थक जाती है तो दिमाग भी विश्रांति की दरकार करने लगता है और लगता है 'दिल ढूँढता है फिर वही फुरसत के रात दिन' जैसे वाक्यांश कहीं खो से गए हैं लेकिन नींद का उत्सव मनाने से पहले भले ही एकाध पंक्ति ही सही कुछ तो 'देखना' ही पड़ता है। सिरहाने किताब न हो तो लगता है कि कहीं कोई पसंदीदा चीज गायब हो गई है। आज, इस वक्त और कुछ नहीं बस्स सोने के उपक्रम से पहले चिली के महान कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता पाब्लो नेरुदा ( १९०४ - १९७३ ) की यह एक कविता :

पाब्लो नेरुदा की कविता
तुम्हारे पाँव
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह )

जब मैं देख नहीं पाता हूँ
तुम्हारे चेहरे को
तो निहारता हूँ तुम्हारे पाँव
वक्र अस्थियों से निर्मित
तुम्हारे नन्हें- नन्हें पाँव।

मैं जानता हूँ कि वे तुम्हें प्रदान करते हैं आधार
उन्हीं पर टिका रहता है तुम्हारा मधुर भार
उन्हीं के सहारे उभरती है तुम्हारी कटि
उन्हीं के सहारे उभरता है तुम्हारा वक्ष
उन्हीं से उभरते हैं बैंगनीं आभा से दीप्त तुम्हारे कुचाग्र युग्म
उन्हीं से थाह पाती है तुम्हारी आँखों की गहराई ।

फिलवक्त दूर है मुझसे
तुम्हारा मुखारविन्द
तुम्हारी ललछौहीं केशराशि
जो रूपायित कर देती है तुम्हें एक छोटे से आकाशदीप में।

लेकिन मैं
बस तुम्हारे पाँवों को प्यार करता हूँ
क्योंकि वे अनवरत चलते रहे -
जमीन पर
हवा पर
पानी पर
तब तक , जब तक कि उन्हें मिल न गया मैं - मेरा निशान।
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"You can cut all the flowers but you cannot keep Spring from coming"
- Pablo Neruda

5 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

सुन्दर रचना और बेहतरीन अनुवाद!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

डॉ.साहिब!
अवुवाद इतना सुन्दर है तो मूल कविता कितनी सुन्दर होगी!

आपकी लेखनी को प्रणाम!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

waah

सागर ने कहा…

sundar..

abcd ने कहा…

"you can cut....."

beautiful.

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चाहे लाख शमाये रोशन कर ले,

धूप--बदल जायेगी /
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