सोमवार, 23 नवंबर 2009

कितनी कसी हुई है यह प्यार के जाल की फाँस

खुशी और संतोष की बात है कि कुछ दिन पहले ही 'कर्मनाशा' पर पहली बार (निज़ार क़ब्बानी की कवितायें) अनुवाद प्रस्तुत किया और उसे पसन्द भी किया गया। इस ठिए पर आने वाले सभी साथियों के प्रति हृदय से आभार व्यक्त करते हुए मन कर रहा है अनुवाद की पोस्ट्स को एक अंतराल बाद लगाया जाय। मित्रों और कविता प्रेमियों के उत्साहवर्धन से आलस्य टूटा है और अनुवाद का काम एक गति पकड़ चुका है । शुक्रिया दोस्तो !

अन्ना अख़्मातोवा की मेरे द्वारा अनूदित कुछ कवितायें आप 'कबाड़ख़ाना' पर
पहले पढ़ चुके हैं । रूसी की इस बड़ी कवि को बार - बार पढ़ना अच्छा लगता है और जो चीज अच्छी लगे उसे साझा करने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए।

सो ,आज बिना किसी विस्तृत पूर्वकथन के प्रस्तुत है अन्ना अख़्मातोवा एक कविता ( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह ):

आखिर कितने तकाज़े कर सकता है कोई महबूब

आखिर कितने तकाज़े कर सकता है कोई महबूब
स्त्री किसी एक का भी नहीं करती है प्रतिवाद.

कितनी खुश हूँ मैं आज के दिन
रंगहीन बर्फ के तल में जल है गतिहीन
और नरम चमकदार कफ़न के बगल में
खड़ी मैं
पुकार रही हूँ - मदद करो मेरे ईश.

कोई है, जो मेरी चिठ्ठियों को बचा ले !
ताकि हमारे परवर्ती कायम कर सकें कोई राय
कि तुम कितने बहादुर और बुद्धिमान थे
उन्हें पूरी स्पष्टता के साथ
यह तो पता चले
कि तुम्हारी शानदार जीवनी में
शायद छोड़ दिए गए हैं कई अंतराल.

कितनी मीठा है यह दुनियावी मद्य
कितनी कसी हुई है यह प्यार के जाल की फाँस
ऐसा हो कि बच्चे किसी समय
अपनी पाठ्य पुस्तकों में पढ़ सकें मेरा नाम
और कुछ सीख सकें
इस दुखान्त कथा के बहाने
और मुस्कुरायें मंद - मंद....

चूँकि तुमने मुझको
न तो प्यार दिया है न ही शान्ति
इसलिए
बख्शो मुझे कड़वा ऐश्वर्य.

4 टिप्‍पणियां:

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

बढ़िया अनुवाद है ...!!

वो भी रुसी भाषा से ....!!

कमाल kiya है आपने ....!!

बस एक जगह देखें ...

''कितनी मीठा है यह दुनियावी मद्य"'

यहाँ कितना मीठा ....."

अंतिम पंक्ति भी कुछ स्पष्ट नहीं लगती ....
!!

Udan Tashtari ने कहा…

अच्छा लगा पढ़कर.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत ही करीने से अनुवाद किया है!
कविता का अनुवाद कविता में।
बहुत बढ़िया!

सागर ने कहा…

शुक्रिया... कबाड़ख़ाने पर भी अन्ना की कवितायेँ पढ़ी...