मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

आँखे तर हैं और हॄदय तरल


आज शाम एक तितली से मुलाकात हुई. अब जबकि गर्मी का मौसम अपने चरम की ओर है और चारों ओर चुनाव की गर्मी का जोर है तब तितली से मिलना भला -सा लगा. बाज़ार से लौटकर देखा की अपने नन्हें - से बगीचे में धूल -धक्कड़ से सने मिर्च के पौधे पर दो तितलियाँ मौज कर रही हैं . उनके पास जाते ही बड़ी वाली तो पड़ोसी के बगीचे की ओर उड़ चली किन्तु छुटकी जस की तस बैठी अपने पंख समेटे मौज में मशगूल रही . उसका नाम पूछा तो कुछ नहीं बोली , न ही पलटकर देखा. एक नन्हें सुंदर जीवधारी के जीवन व्यापार में खलल डालना उचित नहीं था. मन नहीं माना तो इस अनूठे क्षण को कैमरे में कैद कर लिया.

थोड़ी देर बाद छत पर जाकर गमलों का मुयायना किया तो रहस्य उजागर हुआ कि पहले जहाँ रूप व सौंदर्य का बोलबाला हुआ करता था अब उस जगह सूखापन है. यह गर्मी के मौसम की मार है अथवा जीवन - जगत के नश्वर व्यापार का मूर्त वर्तमान ? यह भी देखने को मिला कि अगर भरपूर जिजीविषा और उद्दाम जीवट है तो मौसम के मारक मिजाज के विरुद्ध अपने भीतर कोमलता तथा हरापन बचाया जा सकता है. प्रकॄति हिन्दी - अंग्रेजी के भाषायी विवाद में पड़े बिना कितना कुछ कह जाती है , यह भी आज शाम बखूबी देखा . छत पर मुँगौड़ियों की कलात्मक डिजाइन देखी - मानों धूप में सीझता हुआ स्वाद !

एक ही शाम में कितना - कितना- कितना देख लिया. सूरज को डूबते और क्षितिज को लाल होकर क्रमश: कालिमा में विलीन होते तो रोज ही देखता हूँ. अँधेरे के खिलाफ़ इंसानी जानकारी के जीवंत कारनामे बिजली की जगमग में नहाई हुई यह रात अब गाढ़ी हो चली है. आज जो देखा वह क्या मेरा निजी मामला भर था ? शायद नहीं, कुदरत और कायनात का यह करिश्माई अंदाज भीतर दुबकी हुई संवेदनशीलता को सतह पर उभार कर अभी भी विद्यमान है- आँखे तर हैं और हॄदय तरल. कुछ इसी मन:स्थिति में आज अपने नन्हें - से बगीचे और छोटी - सी छत पर धूल - धक्कड़ , धूप - घाम झेल रहे गमलों में लगे फूल पत्तियों तथा खानपान के उपादानों से हुए साक्षात्कार को चित्रों व कवितानुमा अभिव्यक्तियों के साथ हाजिर हूँ . देखते हैं 'कर्मनाशा' के पाठकों को यह रंग भाता है कि नही !
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मिर्ची की कलियों पर फूलों की रानी ,
चाहिए यह तीतापन क्या है परेशानी ?
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मीठी इस नीम के हरे - हरे पात,
स्वाद और सुगंध दोनो इक साथ !
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धूप के खिलाफ़ यह छतरी छतनार ,
अड़े रहो दोस्त कुछ भी कहे संसार !
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सूख गए फूल उड़ गया रूप रीता सौंदर्य ,
फिर भी हो तने खड़े क्या गज़ब का धैर्य !
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छत पर हैं सूख रहीं ताजी मुँगौड़ियाँ ,
मिर्च रखवाली में खुशबू की लड़ियाँ.
अभी तो तपन है धूप का है राजपाट,
आएगी बारिश तो खायेंगे पकौड़ियाँ !
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4 टिप्‍पणियां:

श्यामल सुमन ने कहा…

चित्र सभी अच्छे लगे रचना भाव प्रधान।
प्राकृतिक सौन्दर्य का अच्छा किया बखान।।


सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Arvind Mishra ने कहा…

दृष्टांत मनोहर !

Manish Kumar ने कहा…

गर्मी की इस मार के बीच आपके ये मनोहारी चित्र व दो लाइना शीतल हवा की तरह लगे।

एस. बी. सिंह ने कहा…

आप का सौभाग्य है जो आपने देखली। हमें तो तितली देखे बरसों हो गए।