सोमवार, 6 अक्तूबर 2008

सिर्फ सपनों में

मेरे सपनों में आते हैं
आड़ू , सेब , काफल और खुमानी के पेड़
पेड़ों के नीचे सुस्ताई हुई गायें
और उनके थनों से निकलता हुआ दूध .

मेरे सपनों में आते हैं
सीढ़ीदार खेत , रस्सियों वाले पुल
और पुल से गुजरते हुए स्कूली बच्चे .

मेरे सपनों में आते हैं
जंगल , झरने , शिखर
घास काटती हुई स्त्रियां
और बोझा ढोते हुए मजदूर .

मेरे सपनों में आते हैं
पहाड़ से आने वाले लोग
मेरे सपनों में आते हैं
पहाड़ को जाने वाले लोग .

मेरे सपनों में
अब नहीं आता है पहाड़
जबकि अब...
सिर्फ
सिर्फ
सिर्फ
सपनों में ही आ सकता है पहाड़ !


( यह कविता वेब पत्रिका : http://www. hindinest.com के अंक - March 14‚ 2003 में प्रकाशित हो चुकी है.साथ लगा चित्र http://www.pahar.org से साभार )

9 टिप्‍पणियां:

manvinder bhimber ने कहा…

मेरे सपनों में आते हैं
जंगल , झरने , शिखर
घास काटती हुई स्त्रियां
और बोझा ढोते हुए मजदूर .

bahut sunder

एस. बी. सिंह ने कहा…

मेरे सपनों में
अब नहीं आता है पहाड़
जबकि अब...
सिर्फ
सिर्फ
सिर्फ
सपनों में ही आ सकता है पहाड़ !

एक पूरी दुनिया जो हम छोड़ आए हैं उसकी अत्यन्त संवेदनशील स्मृति। उससे फ़िर न जुड़ पाने की मजबूरी को भी बड़ी खूबसूरती से रेखांकित किया। बहुत सुंदर।

वर्षा ने कहा…

ये सपने आते रहें बस।

वर्षा ने कहा…

एक कहानी हुआ करती थी हमारे कोर्स की किताब में कर्मनाशा की हार। मुझे पसंद थी। आपके ब्लॉग का नाम और कर्मानाशा पर लिखा गया दोनों उस कहानी की याद दिलाते हैं।

ghughutibasuti ने कहा…

मेरे सपनों में
अब नहीं आता है पहाड़
जबकि अब...
सिर्फ
सिर्फ
सिर्फ
सपनों में ही आ सकता है पहाड़ !
sahi. keval sapnon mein hi.
ghughuti basuti

Udan Tashtari ने कहा…

जबकि अब...
सिर्फ
सिर्फ
सिर्फ
सपनों में ही आ सकता है पहाड़ !


--गजब!! क्या बात है...आभार इस जागृति के लिए.

seema gupta ने कहा…

मेरे सपनों में आते हैं
जंगल , झरने , शिखर
घास काटती हुई स्त्रियां
और बोझा ढोते हुए मजदूर .
" you seems to be nature lover, beautiful presentation'

regards

अमिताभ मीत ने कहा…

सपनों में आते रहे पेड़-जंगल-पहाड़, ये आवश्यक है,,,,,, कभी इन सपनों की ताबीर मिलेगी ..... पेड़-जंगल-पहाड़ - हमारे चारों तरफ़ ,,,,, ये सपने बहुत ज़रूरी है ,,

पारुल "पुखराज" ने कहा…

huuk utthti hai apni zameen -apaney aasmaan ke liye ....