शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

प्रारब्ध और उत्सव : मारिओ विर्ज़

इस ठिकाने पर जर्मन कवि  , कथाकर और अभिनेता मारिओ विर्ज़  की एक  कविता  'इंटरनेट  लाइफ़' का अनुवाद पहले भी पढ़ चुके हैं। आज प्रस्तुत हैं उनकी दो बेहद छोटी कवितायें। मारिओ  के रचनाकर्म का विश्व की कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है। उनकी मशहूर किताबों में 'इट्'ज लेट आइ कांट ब्रीद' , 'आइ काल द वूल्व्स' शामिल हैं।


मारिओ विर्ज़ की दो कवितायें

प्रारब्ध

समुद्रों के
अतल तल में
शयन कर रहे हैं देवगण
और स्वप्न देख रहे हैं
हमारे प्रारब्ध का।

कभी - कभी वे बदलते हैं करवट
और आते हैं तूफान
होती है उथल - पुथल।

उत्सव                                                                                                          

बारिश में 
गुलाबों का धमाल
एक आनंदोत्सव है
मदिरा में डूबी हुई  रात में।
ऐन हमारी खिड़कियों के सामने
वे करते हैं किलोल
तब,  जबकि हम
डूबे हुए होते हैं नींद में।
---
(अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह  / पेंटिंग : कैरोल शिफ़  की  कृति  'द सी' , गूगल छवि से साभार)

8 टिप्‍पणियां:

Reenu Talwar ने कहा…

Bahut sundar, kavita evam anuvaad

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार को (23-11-2013) "क्या लिखते रहते हो यूँ ही" : चर्चामंच : चर्चा अंक :1438 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

कविता रावत ने कहा…

बहुत सुन्दर अनुवाद!
हार्दिक शुभकामना!

Niraj Pal ने कहा…

इस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 24/11/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/" चर्चा अंक - 50 पर.
आप भी पधारें, सादर ....

Onkar ने कहा…

वाह, बहुत खूब

travel ufo ने कहा…

प्रिय ब्लागर
आपको जानकर अति हर्ष होगा कि एक नये ब्लाग संकलक / रीडर का शुभारंभ किया गया है और उसमें आपका ब्लाग भी शामिल किया गया है । कृपया एक बार जांच लें कि आपका ब्लाग सही श्रेणी में है अथवा नही और यदि आपके एक से ज्यादा ब्लाग हैं तो अन्य ब्लाग्स के बारे में वेबसाइट पर जाकर सूचना दे सकते हैं

welcome to Hindi blog reader

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह !

रश्मि प्रभा... ने कहा…

आसमान पर ज़िंदगी की तहरीर...! यूँ ही नहीं लिखी जाती - कुछ अफ़साने होते हैं,कुछ घुटते एहसास,कुछ तलाशती आँखों के खामोश मंज़र, कुछ ……जाने कितना कुछ,
जिसे कई बार तुम कह न सको
लिख न सको
फिर भी - कोई कहता है,कहता जाता है …… घड़ी की टिक टिक की तरह निरंतर
http://www.parikalpnaa.com/2013/11/blog-post_30.html