आज से बहुप्रतीक्षित रोहतांग टनल का निर्माण कार्य समारोहपूर्वक शुरू हो गया। यह सबसे लम्बी सुरंग होगी जो बनने जा रही है। लक्ष्य है कि २०१५ पर यह काम पूरा कर लिया जाएगा।आज टीवी पर इससे संबंधित समाचारों की धूम है। पिछले माह कुल्लू से केलंग और वापसी की यात्रा के दौरन रोहतांग पर क्षण भर से थोड़ा अधिक समय ठहरने का अवसर मिला था। बार - बार मुझे अपनी उस पुस्तक की याद आ रही थी जिसे सफर पर निकलने की जल्दबाजी में भूल गया था। वह पुस्तक है कृष्णनाथ जी द्वारा लिखित 'स्पीति में बारिश' । लाहुल के मुख्यालय केलंग के 'होटल चन्द्रभागा' में बिश्राम और जनजातीय संग्रहालय में लिखत - पढत का काम करते हुए बार - बार यह पुस्तक याद आती रही। आज सुबह - सुबह कैलास चंद्र लोहनी जी का फोन आ गया कि टीवी पर रोहतांग टनल के समारोह की खबर आ रही है, देखो। ठीक उसी समय मैं अजेय की कवितायें उनके ब्लाग पर पढ़ रहा था। कुछ कवितायें लोहनी जी को भी फोन पर सुनाईं। उन्होंने भी कुल्लू, केलंग और रोहतांग को बहुत प्रेम से याद किया। कंप्यूटर बन्द किया और टीवी खोलकर बैठ गया। लगभग हर समाचार चैनल पर रोहतांग उपस्थित था। फिर अजेय को फोन किया। फिर रोहतांग हमारी बातचीत के भीतर पिघल कर बहता रहा। फिर टीवी। फिर कंप्यूटर। फिर कागजों के बीच कुछ खोजबीन , यूँ ही कुछ आड़ी - तिरछी रेखाओं का खेल। फिर तस्वीरॊं की उलट -पुलट। कुल मिलाकर कहना यह है कि आज दिन भर रोहतांग मन - मस्तिष्क में उमड़ घुमड़ करता रहा। अभी कुछ देर पहले कुछ तस्वीरें 'कबाड़ख़ाना' पर पेश की हैं। फिर भी बहुत कुछ है जो भीतर - ही भीतर अटका हुआ है।आज और अभी प्रस्तुत है एक तस्वीर और कविता जैसा कुछ - कुछ..
बूँद- बूँद नदी
प्रकृति यहीं से उगाती है बादल।
यहीं से देखा जा सकता है
आँख भर कर आसमान
और यहीं से खुलती है
एक दूसरी दुनिया की राह
जिसे या तो किताबों में देखा है या फिर कविताओं में।
गया था वहाँ
पाला छूकर लौट आया
आश्चर्य से खदबदाता हुआ
कैमरे में कैद बर्फ़बारी
जिह्वा पर स्वाद
और हृदय में कविताओं की ऊष्मा लेकर।
आज अभी देख रहा हूँ
स्क्रीन पर उभरता हुआ दृश्य
हर - बार अलग - अलग जादू में लिप्त
टूट रही है पहाड़ॊं की नींद
ख़बरों - सूचनाओं के भरमार में
खोया हुआ - सा है मेरा कुछ सामान।