( इब्ने इंशा साहब की मशहूर नज्म 'उस आँगन का चाँद' को बहुत प्यार के साथ याद करते हुए )
चाँद कहाँ सबको मिलता है ,चाहिये सबको मिलना चाँद ,
ऑखों में है चाँद का सपना, फिर भी है एक सपना चाँद ।
एक अकेला चाँद है प्यारे ,और करोड़ों चाहने वाले ,
फिर भी सबको खुशफहमी है मेरा ही है मेरा चाँद ।
रुत बदली दुनिया भी बदली ,बदला देश निजाम मगर ,
जैसे हो वैसे ही रहना , तुम तो नहीं बदलना चाँद ।
माना दुनिया बहुत बुरी है ,चारो ओर है मक्कारी ,
फिर भी अच्छाई क्यों छोड़े मेरा अच्छा-अच्छा चाँद।
माना देस बिराना है , और सबको एक दिन जाना है ,
लेकिन जब तक खुद में दम है ,तब तक रोज निकलना चाँद।
फर्ज हमारा बेहतर दुनिया , दुनिया जिसमें भेद न हो,
राजा-परजा रहे न कोई , ऐसी दुनिया गढ़ना चाँद ।
चाँद है हममें चाँद है तुममें ,सबमें अनगिन चाँद ही चाँद,
आओ सबको एक बना लें , तब होगी यह दुनिया चाँद ।
( चित्र : विन्सेंट वान गॊग का 'स्टारी नाइट्स )