सोमवार, 28 सितंबर 2009

शुभकामनायें - बधाई !

दशहरा ,
दुर्गापूजा,
विजयादशमी
पर सभी को शुभकामनायें - बधाई !

मंगलवार, 22 सितंबर 2009

मुझे ही नहीं , सबको चाँद चाहिए !

( इब्ने इंशा साहब की मशहूर नज्म 'उस आँगन का चाँद' को बहुत प्यार के साथ याद करते हुए )

चाँद कहाँ सबको मिलता है ,चाहिये सबको मिलना चाँद ,
ऑखों में है चाँद का सपना, फिर भी है एक सपना चाँद ।

एक अकेला चाँद है प्यारे ,और करोड़ों चाहने वाले ,
फिर भी सबको खुशफहमी है मेरा ही है मेरा चाँद ।

रुत बदली दुनिया भी बदली ,बदला देश निजाम मगर ,
जैसे हो वैसे ही रहना , तुम तो नहीं बदलना चाँद ।

माना दुनिया बहुत बुरी है ,चारो ओर है मक्कारी ,
फिर भी अच्छाई क्यों छोड़े मेरा अच्छा-अच्छा चाँद।

माना देस बिराना है , और सबको एक दिन जाना है ,
लेकिन जब तक खुद में दम है ,तब तक रोज निकलना चाँद।

फर्ज हमारा बेहतर दुनिया , दुनिया जिसमें भेद न हो,
राजा-परजा रहे न कोई , ऐसी दुनिया गढ़ना चाँद ।

चाँद है हममें चाँद है तुममें ,सबमें अनगिन चाँद ही चाँद,
आओ सबको एक बना लें , तब होगी यह दुनिया चाँद ।
( चित्र : विन्सेंट वान गॊग का 'स्टारी नाइट्स )

सोमवार, 21 सितंबर 2009

फिर - फिर यह कविताई !

चलो अब सो जाओ रे भाई !

असरा - पसरा है सन्नाटा देखो रात अधियाई।
चिड़िया - चरगुन सोय रहे हैं सोयें कुकुर -बिलाई।

पर तुम जाग - जागकर भैया करते कौन कमाई ?
उजले कागज को काला कर लिखते कौन लिखाई ?
जिसको तुम कविता कहते हो वह तो तुकम - तुकाई।

जग है , स्याना मारे , ताना तुमको समझ न आई !
यह सब छोड़ो , माया जोड़ो , सीखो कुछ चतुराई ।

समय बीतने पर ना कहियो , हमने ना समझाई !
सिद्धू बाबू ना सुधरोगे , फिर - फिर यह कविताई !

आधी रात उतार पै आई तुमको नींद न आई !
चलो अब सो जाओ रे भाई !

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

संवाद




- आज क्या किया ?
- काम .
- कल क्या किया था ?
- काम .
- कल क्या करना है ?
- काम.
- क्यों ?
- इसलिए कि काम न करें तो क्या करें ? काम ही कर लें.
- कैसा काम ?
- पता नहीं.
- तो फिर काम किसलिए ?
- पता नहीं.
- क्या पता नहीं ?
- काम .
- तो यह क्या कर रहे हो ?
- काम.
- ---------
- हे राम !

गुरुवार, 10 सितंबर 2009

मध्यरात्रि : कुछ स्वगत

१.
हम
साथ- साथ।

तुम मुखर
मैं मौन ।
पूछ रहा हूं स्वयं से-
तुम कौन ?
मैं कौन ?

२.

सुख कहाँ है ?
किस ओर पसरा है दु:ख ?

किसको भरमा रहा हूँ
इतनी देर से.

निरख रहा हूँ दर्पण में
अपना ही मुख !

३.

भाषा किसे किसे कहते है
किसे कहते हैं
बातचीत - संवाद - वार्तालाप.

कौन उलझे इन सवालों से
कौन मोल ले जी का जंजाल.

आओ बारिश को सुनें
भीग जाए वर्णमाला तो भीग जाए
अपनत्व की आँच में
चलता रहे एकालाप।

४.

रात
खुद से कर रही है बात.

शब्दों की बिसात पर
खुद को ही शह खुद से ही मात.

कौन है
जो नींद को जगाए हुए है ?
कौन है
जो आधी रात को कह रहा है शुभ प्रभात !